Tuesday 21 December 2021

Devi devta : देवी देवता

खरी खरी -980 : ' देवी- देवता ' ऐसे तो नहीं आते ?

     शादी में महिला संगीत और कीर्तन भी दो विधाएं आजकल देखादेखी खूब रंग में हैं | महिला संगीत में स्थानीय भाषाओं को सिनेमा के गीतों ने रौंद दिया है | ‘चिकनी चमेली..., बदतमीज दिल...., आंख मारे ...जैसे सिने गीतों की भरमार है | कैसेट- सी डी या डीजे लगाओ और आड़े- तिरछे नाचो, हो गया महिला संगीत | कहाँ गये वे ‘बनड़े’ जैसे परम्परागत गीत ? कीर्तन में भी पैरोडी संग नृत्य हो रहा है | सिनेमा के गीत की धुन में शब्दों का लेप लगा कर माता रानी को रिझाने का एक निराला अंदाज बन गया है | ' बृज की छोरी से राधिका गोरी से ...'  (सिने गीत ' हम तुम चोरी से बंधे एक डोरी से ...) । पता नहीं ये कौन लोग हैं जो कृष्ण की अनन्य भक्त राधा का कीर्तन में कृष्ण से ब्याह कराना चाहते हैं ? लोग तालियां बजाते है या नाचने लगते हैं ।

      आजकल हरेक कीर्तन में कुछ महिलाओं में ‘देवी’ आ जाती है जो आयोजकों से हाथ जुड़वा कर ही थमती है | पता नहीं दूसरे के घर में बिन बुलाये ये ‘देवी’ आ कैसे जाती है ? आना ही है तो अपने घर में आ और अपने घरवालों को राह दिखा, दूसरे के घर में यह सबके सामने तमाशा क्यों ? कीर्तन में यह शोभा भी नहीं देता जबकि ‘देवी’ वाली अमुक आंटी चर्चा में आकर भविष्य में गणतुवा भी बन सकती है | जिस कीर्तन में अपनी ही संस्कृति की झलक हो उसे उत्तम कीर्तन कहा जाएगा |

      इधर आजकल सांस्कृतिक आयोजन में कुछ कलाकार मंच से गायन की ‘जागर’ विधा गाते हैं तो दर्शकों में बैठी कुछ महिलाओं ( पुरुषों को भी ) को 'देवी ' आ जाती है ।  चप्पल पहने, बिन हाथ-मुंह धोये दर्शकों के समूह में यह ‘देवी’ पता नहीं क्यों आ जाती है ? गीत - संगीत थमते ही देवी चली भी जाती है क्योंकि यह सब गीत - संगीत का असर होता है । लोग इनके आगे हाथ जोड़कर महिमा मंडन करने लगते हैं और गायक भी स्वयं को धन्य समझने लगता है । हमने यह जरूर सुना - देखा है कि कुछ लोग  ' जागर ' में अपने घर पर देवी या देवता नचाते है परन्तु इसकी एक श्रद्धा - मर्यादा वे जरूर अपनाते हैं । आयोजनों में इस तरह किसी स्त्री या पुरुष में  देवी - देवता नाचना और उसका महिमामंडन करना एक अनुचित परम्परा को प्रोत्साहन देना है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

22.12.2021

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