खरी खरी - 979 : गिच खोलणी चैनी (गजल)
मसमसै बेर क्ये नि हुन
बेझिझक गिच खोलणी चैनी,
अटकि रौछ बाट में जो दव
हिम्मत ल उकैं फोड़णी चैनी ।
अन्यार अन्यार कै बेर
उज्याव नि हुन,
अन्यार में एक मस्याव
जगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...
क्ये दुखै कि बात जरूर हुनलि
जो डड़ाडड़ पड़ि रै,
रुणी कैं एक आऊं
कुतकुतैलि लगूणी चैनी ।
मसमसै बेर...
जिंदगी छ एक उकाव होराव,
खितख़ितानै हात -खुट
फतोड़णी चैनी ।
मसमसै बेर...
आपसी रिश्त टड़ाटड़ी
टुटैं रईं जां -तां,
रिश्तों कैं बड़ि जतन ल
समाउणी चैनी ।
मसमसै बेर...
पूरन चन्द्र काण्डपाल
21.12.2021
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