बिरखांत-418 : (संस्मरण 12)भैम, भ्रम या वहम
मैं काल्पनिक बहुत कम लिखता हूं | जो देखा या जो हो सकता है अथवा जिसे किया जा सकता है वही लिखता हूँ | अंधविश्वास का विरोध मैं अक्सर करता हूं | अंधविश्वास का एक रूप भ्रम भी है | भ्रम, भैम या वहम बहुत बुरी चीज है | इसका इलाज भी नहीं है | जो भ्रम का शिकार हो जाता है उसका चैन- सुकून सब उड़ जाता है, यहाँ तक कि वह रोग ग्रस्त भी हो सकता है | मेरा मानना है कि भ्रम को मन में पनपने नहीं दिया जाय | इस सम्बन्ध में एक पुरानी याद यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ |
बात १९७१ की है जब मैं अपने साथी सैनिकों के साथ पंजाब के हुसैनीवाला बॉर्डर पर सतलज नदी के किनारे एक छोटी सी बैरेक में रहता था | हम आठ लोग उस बैरेक में रहते थे | तब मेरी उम्र मात्र २३ वर्ष की थी और मैं बैरेक में रहने वालों में सबसे छोटा था | छोटा होने के बावजूद भी सब मेरी बड़ी कद्र करते थे, मुझ पर विश्वास करते थे | जब सायं को सभी एकत्र होते थे तो हंसी –मजाक भी चलती थी और आपसी बहसबाजी भी | कभी घर की बात तो कभी ड्यूटी की और कभी इधर-उधर की | कभी कभी आपस में खुराफात या जुमलेबाजी भी करते थे | कुछ अधिक तो कुछ कम बोलते थे परन्तु बोलना या एक-दूसरे को छेड़ना अथवा चुटुकुलेबाजी चलती थी |
हमारे बीच एक तिवारी जी भी थे जो हमसे कुछ अलग थे परन्तु थे बहुत ही शरीफ | वे कम बोलते थे परन्तु मेरे साथ उनका बोलना- चालना औरों से अधिक था | वे मेरी प्रत्येक बात को बड़ी संजीदगी से लेते थे | वे नहा कर बदन पर सरसों का तेल भी मलते थे | बिलकुल सौम्य प्रकृति थी उनकी | भगवान के नाम पर एक चित्र के सामने रोज अगरबत्ती भी जलाते थे | तेल लगाते समय वे एक एक पैर को बारी बारी से खटिया में रख कर मालिश करते थे | सभी लोग उनके मालिश पर भी कुछ न कुछ कहते थे |
एक दिन एक साथी को खुराफात सूझी | तिवारी जी तब नहाने गए हुए थे | खुराफाती मित्र बोला, “भई आज तिवारी जब तेल मालिश करेगा तो उससे कह दो कि तेरी एक टांग छोटी है | देखते हैं क्या रिऐक्सन करता है |” दूसरा साथी बोला, “वह यकीन तभी करेगा जब ये (मेरा नाम लेकर ) उससे कहेगा, वरना हमारी तो वह सुनेगा भी नहीं और न यकीन करेगा |” मेरे कई बार मना करने पर भी उन्होंने मुझे मना ही लिया और मैं राजी जो गया | ज्यों ही तिवारी जी नहा कर आये और बारी बारी से टांगों की तेल मालिश करने लगे, मैंने उनकी तरफ देखते हुए कह दिया, “तिवारी जी मुझे आपकी ये बायीं टांग कुछ छोटी नजर आ रही है |” सबने एकसाथ कह दिया, “हाँ दिख तो रही है |” तिवारी जी अपनी दोनों टांगों को एकसाथ कर ध्यान से देखने लगे |
तिवारी को मेरे कहने से यकीन हो गया कि उसकी बायी टांग छोटी है | एक दिन एकांत में गंभीर हो कर मेरे सी पूछने लगे, “यार ये क्यों छोटी हो गयी होगी ?” मैंने उन्हें समझाया कि ठीक हो जायेगी | तिवारी को भ्रम हो गया कि उसकी टांग छोटी है | लगभग एक महीने बाद तब बहुत दुःख हुआ जब देखा कि तिवारी की टांग सचमुच आधा इंच छोटी हो गयी | मुझे ऐसा लगा कि मैंने मजाक- मजाक में यह कितनी बड़ी गलती कर दी है | तिवारी बहुत उदास रहने लगा और मैं अपने को हत्यारा समझने लगा क्योंकि तिवारी को मुझ पर बड़ा यकीन था कि मैं इस तरह कि घटिया खुराफाती मजाक नहीं कर सकता | मुझे हिम्मत नहीं हुयी कि मैं तिवारी से इस बात को कैसे कहूं ताकि उसका भ्रम मिट जाय |
आने वाले रविवार को में मौका देखकर तिवारी को यूनिट के नजदीक ही सतलज नदी के किनारे ले गया | वहाँ मैंने तिवारी को शुरू से लेकर आखिर तक की सारी बात बता दी और उसकी गोद में अपना सिर रख कर कई बार माफी मांगी | जब उन्हें मेरी बात का यकीन हो गया तब हम वहाँ से वापस आये | कुछ दिन बाद तिवारी की टांग ठीक हो गयी और वह अब पहले के बजाय थोड़ा-बहुत बोलने या मजाक करने लगे | टांग छोटी होने का कारण था भ्रम | जब हम भ्रम के शिकार हो जाते हैं तो सबसे अधिक हमारे ग्रंथी तंत्र (glandular system) पर असर पड़ता है | कई ग्रंथियां तो काम करना छोड़ देती हैं और कई अधिक सक्रीय हो जाती हैं | तिवारी की एड़ी की मसल इस भ्रम के कारण कुछ सिकुड़ गयी और वे टेड़ा चलने लगे क्योंकि वे मान चुके थे की उनकी एक टांग छोटी है | भ्रम दूर होते ही सब ठीक हो गया पर मैं अपने को माफ़ न कर सका | जो व्यक्ति मुझ पर बहुत यकीन करता था उसके साथ मैंने ऐसा मजाक नहीं करना चाहिए था | अत: इस तरह का मजाक नही किया जाय | साथ ही व्यक्ति को कभी भी भ्रम का शिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि भ्रम का कोई इलाज भी तो नहीं है |
पूरन चन्द्र कांडपाल
15.12.2021
No comments:
Post a Comment