खरी खरी - 978 : जाति-धरम के अलावा भी
कुछ महीने पहले एक राष्ट्रीय हिंदी दैनिक समाचार पत्र में छपे एक लेख "असली हिन्दू, नकली हिन्दू", देश का ध्यान इस ओर आकर्षित करता है कि सोमनाथ मंदिर (गुजरात) में गैर हिन्दुओं की प्रविष्टि के लिए अलग रजिस्टर क्यों रखा गया ? इस मुद्दे पर हमारे मीडिया खूब टीआरपी बनाई । यह वही मीडिया है जो कुछ समय पहले शनि सिगनापुर मंदिर में स्त्री की प्रविष्टि नहीं होने पर बहुत आंदोलित था या सबरीमाला मंदिर में महिला प्रवेश किये जाने पर पक्षधर था । अब सबरीमाला मंदिर पर भी मीडिया का रुख बदल गया है और चुप्पी साध ली । अधिकांश मीडिया सुविधाजनक सिद्धांत पर चलने लगा है । हमारी मीडिया को इस विभाजनकारी प्रवृति से निजात कब मिलेगी या मिलेगी भी कि नहीं ? जाति -धरम के मुद्दों को हवा देने के बजाय भारत और भारतीयता की बात होती तो देश का हित होता ।
कुछ मीडिया चैनल इस मुद्दे पर चुप रहे । एक ओर हम देश में संविधान में स्त्री -पुरुष के बराबरी की बात करते हैं और दूसरी ओर हम यह सामाजिक खाई क्यों चौड़ी करते जा रहे हैं ? मंदिर में किसी भी श्रद्धालु को अपनी श्रद्धानुसार प्रवेश पर न कोई पाबंदी होनी चाहिए और न किसी प्रकार का जातीय भेदभाव किया जाना चाहिए । देश में सामाजिक विषमता को सिंचित करने के किसी भी कारक को नहीं बख्शा जाना चाहिए और इस तरह के राग-द्वेष उत्पन्न करने वाली प्रथाओं को शीघ्रता से बंद किया जाना चाहिए । इसके लिए कानून पहले से ही है जिसकी आए दिन अवहेलना होती है ।
इसी तरह इस बीच मंदिर जाने या नहीं जाने पर भी मीडिया ने बहुत कोलाहल किया । यह एक व्यर्थ शोर था । धार्मिक अनुष्ठान करना किसी भी व्यक्ति का अपना दृष्टिकोण है अपनी स्वतंत्रता है। कोई करे या नहीं करे इससे उस व्यक्ति की श्रेष्ठता से कोई लेना -देना नहीं । मीडिया को इस तरह के व्यर्थ मुद्दों पर समय नष्ट करने के बजाय देश हित की चर्चाओं जैसे किसान, जवान, शिक्षा, विज्ञान, पर्यावरण, अंधविश्वास निवारण, सामाजिक सौहार्द आदि के विषय में वार्ता करनी चाहिए तथा देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, रुढ़िवाद, अंधविश्वास, अशिक्षा, सामाजिक विषमता, आतंकवाद, बढ़ती मंहगाई, और कट्टरता के विरोध में खुलकर चर्चा करनी चाहिए। हाल ही में समाप्त हुए किसान आंदोलन के किसानों के लिए कुछ लोग बेहद अशिष्ट शब्द बोलते रहे जो गलत था । आंदोलन करके अपनी आवाज बुलंद करना देश के नागरिकों का संवैधानिक अधिकार है । इन्हीं किसानों के बेटे देश के जवान भी हैं और हमारा नारा भी ' जय जवान जय किसान ' है । कल्पना कीजिए यदि किसान भी हड़ताल कर दें तो क्या हमारा अस्तित्व रहेगा ? लेकिन वह हड़ताल नहीं करता और न करेगा क्योंकि वह अन्नदाता है, जिससे मानव का और जीव का अस्तित्व बना हुआ है ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
20.12. 2021
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