Wednesday 8 May 2019

Naraaee : नराई मीना पाण्डेय

मीठी मीठी -272 : मीना पाण्डेय की 'नराई'

     27 अप्रैल 2019 को मैट्रिक्स अकादेमी शालीमार गार्डन-II, साहिबाबाद, गाजियाबाद उ प्र में कुमाउनी -गढ़वाली कक्षाओं का आयोजन कुछ  संस्थाओं ने मिलकर किया जिनमें मुख्य थीं उत्तरांचल भ्रातृ समिति, "सृजन से'' पत्रिका, उत्तराखंड यूथ एसोसिएसन, हिमालय रिसोल्यूशन एन्हांसमेंट सोसाइटी आदि । कक्षाओं के उदघाटन के अवसर पर 'सृजन से' पत्रिका के संग मुझे एक पुस्तक 'नराई' ( कुमाऊँ के लोक बिम्ब ) भी श्री कैलाश चन्द्र पाण्डेय जी व उनकी टीम द्वारा भेंट की गई । इस पुस्तक की लेखिका सुश्री मीना पाण्डेय हैं जो 'सृजन से' त्रैमासिक पत्रिका की संपादक भी हैं जिसका संपादन वह विगत दस वर्ष से कर रहीं हैं ।

     'नराई' शब्द को कुमाउनी में 'नरै'  ( पुस्तक के आवरण में 'नराई' शब्द के 'रा' की 'आ' मात्रा औऱ 'ई' की 'बड़ी' मात्रा को अलग रंग दिया गया है । यदि इस अलग रंग को नहीं पढ़ा जाय तो 'नरइ' शब्द बचता है जो 'नराई' का कुमाउनी रूपांतर है ।) कहा जाता है जिसका अर्थ भी लेखिका ने पुस्तक के पूर्वकथन में दिया है, नराई अर्थात किसी की याद में अंदर तक भीग जाना । सही अर्थ प्रकट किया है लेखिका ने । वास्तव में नराई एक ऐसी तृष्णा है जो कभी तृप्त नहीं हो सकती, जिसकी हमें नराई लगती है वह क्षण भर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं हो सकता । वरिष्ठ लोकगायक हीरा सिंह राणा के श्रृंगार गीत 'धना धना धना धनूली, धन त्येरो पराणी ; मैं त्येरी नराई लै जैं , धनूली दि जा के निसाणी ।' वास्तव में जब किसी की नराई लगती हैं तो व्यक्ति उसकी याद में हर पल डूबे रहता है और उस डूब से वह तभी पार पाता है जब वह व्यक्ति उसे मिलता है । इस आत्मिक सुख का वर्णन करना असम्भव नहीं तो आसान भी नहीं है ।

        मीना पाण्डेय ने अपनी 'नराई' को 90 पृष्ठ की पुस्तक के रूप में 33 शीर्षकों के साथ विभिन्न प्रकार से वर्णित किया है जिसमें 17 कविताएं हैं,  12 अतुकांत कविताएं हैं और 4 कहानियां हैं अर्थात कहानियों में 'नराई' । कविताओं में पांच शीर्षक तो नारी को समर्पित हैं - 'पर्वतीय स्त्री', 'लड़कियां', 'पहाड़ियों की औरतें', 'ये पहाड़ी औरतें, और 'डरी सहमी एक लड़की ।' 'पर्वतीय स्त्री' कविता को 13 भागों में वर्णित किया गया है । 'नराई' के सभी 33 शीर्षक दिल को छूते हैं । इनमें वर्णित मार्मिक भाव पर्वतीय धरातल का साक्षात स्पर्श, स्पंदन एवं दर्शन कराते हैं ।

      कविता 'विवाह', 'जागर', 'नराई:,  'पहाड़ी युवक', 'रामलीला' और पांचों नारी शीर्षकीय कविताओं सहित सभी कविताएं और कहानियां बहुत रोचक हैं , लुभावनी हैं और प्रत्यक्ष- परोक्ष रूप से पर्वत -नारी  तथा पर्वतीय लोक जीवन की व्यथा- वेदना को गहराई से प्रकट करती हैं । एक कविता है ' घुघुतिया', इस इंद्रधनुषी कविता का एक पद पूरे त्यौहार को आँखों के सामने लाकर रख देता है । एक बानगी - "घुघुते, पूरी, बड़े, खजूरे, माला में गूंथे, पेट तक झूलती नारंगी नाभि को छू जाये ।" इसी तरह 'नराई' कविता के तीन छंदों में से मध्य छंद की बानगी भी एक अद्भुत चुभन महसूस कराती है - "हृदय आषाढ़, आँख चौमास, तन-मन किलमोड़ी के कांटे ।'' इसी तरह कहानी 'बुढापे का सम्बल' का एक वाक्य, ''एक दिन तो सबको जाना है महेश के बापू, मौत अपना पराया देखकर थोड़े ही आती है" एक शाश्वत सत्य का साक्षात्कार कराता है ।

     पुस्तक 'नराई' के प्रत्येक पृष्ठ में कुमाउनी भाषा की शब्द -सम्पदा स्पष्ट दिखाई देती है । कुमाउनी भाषा के प्रयुक्त शब्द लेखिका के हृदय में अपनी भाषा के प्रति स्नेह को दर्शाता है । कुछ प्रयुक्त शब्द हैं - 'पुए, खजूरे, सुंवाले, बिस्वार, शकुनाखर, सुवाल पथाई, घाघरी, आँगड़ी, छाज, सुवा, रंगयालि पिछौड़, स्योनाई, जगरिया, बभूत, उदेख, जागर, चाख, गोट, ब्वारी, पुराई, होलियार, घुघुतिया, तार, मनीआर्डर, मूंगफली पुड़काई, झोली टटकाई आदि । इन शब्दों को हिंदी का एक सामान्य पाठक भलेही कुछ विलम्ब से समझ पाएगा परन्तु कुमाउनी भाषा के जानकार इस शब्द - सम्पदा का खूब आनन्द लेंगे ।

      कुमाउनी की आंचलिक शब्द- सम्पदा को हिंदी के साथ समाहित कर पुस्तक की एक सुंदर एवं रोचक शैली बन गई है । लेखिका का पर्वतीय धरातल, लोक जीवन, संस्कृति, भाषा और परिवेश को छूने का एक सफल प्रयास इस पुस्तक में स्पष्ट दृष्टगोचर होता है । कुमाउनी के इस लोक बिम्ब 'नराई' के प्रकाशन पर लेखिका को शुभकामनाओं के साथ बधाई । हार्ड बाउंड में पुस्तक का मूल्य ₹ 250/- है । पुस्तक प्राप्ति के लिए मोब. नंबर 9811504696 पर संपर्क किया जा सकता है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.05.2019

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