Thursday 16 May 2019

Dalit varg kee dar : दलित वर्ग की डर

बिरखांत 264 : दलित वर्ग कि डर

      कुछ समाचार चैनलक अनुसार देश में कुछ दलित आपण धर्म यैक वजैल बदलण रईं क्यलैकि उनुकैं मंदिर में प्रवेश हुण है वंचित करी जांछ | ज्यादैतर मंदिर हिन्दुओंक द्वारा संचालित करी जानीं जबकि दलित जो कि हिन्दू छीं पर उनुकैं चौथू वर्ण क हिन्दू मानी जांछ | संविधान में त सब बराबर छीं पर आज लै दलित सामाजिक न्याय क लिजी तरसै रईं | जब यूं दलितों कैं हिंदू सम्प्रदाय वाल राम कि चार अंग्वाव किटण त दूर, राम क मंदिर (या क्वे लै मंदिर) में नि जाण द्याल तो पै यूं कां जाल ? व्यथित-दुखित है बेर ऊँ आपण धर्म बदलि बेर ‘रॉबर्ट या अली’ बनण हैं मजबूर ह्वाल | जब आपण धर्म में उनुकैं अछूत समझी जाल तो ऊँ उ धर्म में क्यलै रौल ? आजादीक 72 वर्ष बाद लै यास किस्माक कएक शर्मनाक घटना हमार देश में आये दिन हूं रईं |

     हिमाचल प्रदेश क राज्यपाल देवव्रत आचार्य नशा मिटाओ, बेटी बचाओ और हरियाली बनाओ क बाद अब राज्य क मंदिरों में दलित प्रवेश क बीड़ा उठूँ रईं जां दलितों कैं मंदिरों में पुज करण कि मनाही बतायी जैंछ | बतायी जांछ कि राजनीति है दूरी बनै बेर धरणी आचार्य रुढ़िवादी परम्पराओं कैं टोणण क लिजी मशहूर छीं | यसिक्ये उत्तराखंड में लै कुछ दिन पैली एक मंदिर में दलित परिवार कैं प्रवेश नि हुण दि जै पर जिलाधिकारी ल कानूनी कार्यवाही क आदेश देछ | कुछ महैण पैली चित्रकूट में लै एक मूर्ति कैं छुंगण  पर एक दलित स्यैणि कैं प्रताड़ित करी गो | देशा क क्वे लै हिस्स में आयेदिन यास किस्माक शर्मनाक घटना समाचार पत्रों और समाचार चैनलों कि मुख्य सुर्खि बनते रौनी |

     प्रवचनों में त शबरी और निषाद कि चार दलितों दगै अंग्वाव किटणकि बात हम सुनते रौनू पर जमीन में आजि तक सामाजिक न्याय भौत दूर छ | देश में दलित आबादी हमरि कुल जनसँख्या क लगभग 16 % छ जमें 45% अनपढ़ और 54 % गरीब –कुपोषित छीं | हम सब देखै रयूं कि कुं, मंदिर, घर, चौखट और चौपाल है दलितों कैं दूर धरी जांछ | दलितों में एक वर्ग मैल (मल- मूत्र ) उठूण क काम लै करूं जो आज लै य विज्ञान क युग में हमार लिजी भौत शर्म कि बात छ | एक आन्दोलन इनार लिजी लै क्यलै नि चलाई जान ? देश में कएक यात्रा लै निकलते रौनी | एक यात्रा इनार नाम पर लै निकालो, मिलि बेर इनार पक्ष में लै आवाज त उठौ | धर्मा क सच्च रक्षक निर्दोषों पर अमानवीय व्यवहार कभैं नि करन पर हम य सब देखैं रयूं |

     य दौरान एक सुखद क्षण कि लै आछ जब 32 वर्ष बै ख्वार में मैल उठूण कि कुप्रथा कैं ख़तम करण क लिजी आन्दोलन करणी कर्नाटक क पचास वर्ष क बेजवाड़ा विल्सन कैं रेमन मैग्सेसे पुरस्कार- 216 (एशिया क सबूं है प्रतिष्ठित पुरस्कार ) ल सम्मानित करीगो | विल्सन क अनुसार, ‘ख्वार में मैल उठूण भारत में मानवीयता पर कलंक छ | मैल उठूण शुष्क शौचालयों बै मानव मल-मूत्र कैं हाथ ल उठै बेर, उ मल- मूत्र कि टोपरियों कैं ख्वार में उठै बेर निर्धारित निपटान स्थलों पर ल्ही जाण क काम छ जो भारत क ‘अस्पृश्य’ दलित उनार दगै हुणी संरचनात्मक असमानता क मद्देनजर करनी |’

      मैल उठूण एक वंशानुगत प्यश छ और जैकैं देशाक करीब डेड़ लाख दलित परिवार देश भर में करीब लाखों सार्वजनिक एवं व्यक्तिगत शुष्क शौचालयों कैं साफ़ करनी | मैल उठूण में ज्यादैतर स्यैणिय या च्येलिय छीं जनुकैं भौत कम वेतन दिई जांछ | संविधान एवं क़ानून शुष्क शौचालयों और ख्वार में मैल उठूण पर प्रतिबन्ध लगूंछ पर य क़ानून लागु नि हय | ख्वार में मैल उठूण क काम करणी लोगों कैं आब य अमानवीय कर्म कैं त्याग बेर आपण गुजार क लिजी क्ये दुसरि मजूरी करण क प्रण करण पड़ल तबै ऊँ य   कलंक है छुटकार पै सकनी | दगाड़ में समाज क सबै वर्गों- सम्प्रदायों कैं  दलित समाज क दगाड क्वे लै घृणित व्यवहार नि करण चैन ताकि क्वे दलित आपण धर्म बदलण कि नि सोचो |

     य भौत दुखकि बात छ कि हॉलों में टिहरी में एक दलित सिर्फ नजदीकी मेज में भोजन करण पर कुछ लोगोंल ज्यान है मारि दे । य नफरतक के मतलब छ । देश में कएक जाग उनरि बरयात कैं लै परेशान करीं जां और ब्यौल कैं घोड़ि में बै मुणि उतारी जां । य भौत शर्मनाक छ । यस नि हुण चैन ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.05.2019

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