Wednesday 1 May 2019

Mahngaaee : महंगाई रोकने का वायदा

बिरखांत-262 : मंहगाई रोकना भी था एक वायदा 


     जब भी दो - चार लोग आपस में आम बातचीत करते हैं तो बातों - बातों में कुछ  प्रश्न अपने आप आ ही जाते हैं, “और भइ क्या कर रहे हो ? क्या हो रहा है ? जिन्दगी कैसी चल रही है ? आदि- आदि | इस का उत्तर भी बहुत ही साधारण होता है, “बस भाई सब ठीक- ठाक है, गुजारा हो ही रहा है, चल रही है दाल-रोटी |” लेकिन यह उत्तर आज उस तरह का नहीं रहा | रोटी- दाल गरीब से दिनोदिन दूर हो रहे हैं ।  उत्तर भारत के जंगलों में तो टिम्बर माफियों ने आग लगाई बता रहे हैं परन्तु लोग पूछ रहे हैं कि इस दाल में आग किन माफियों ने आग लगाई ? दाल में लगी आग को बुझाने के लिए हमारा केंद्र- राज्य तंत्र तमाशबीन क्यों बन गया है ?


     एक गरीब या आम आदमी को ज़िंदा रहने कि लिए पानी के अलावा मात्र छै वस्तुएं चाहिए – आटा, चावल, दाल, चीनी, चाय और नमक | सब्जी, दूध, घी- तेल, फल की बात नहीं कर रहा जो उससे बहुत दूर हैं | वर्तमान में इन छै वस्तुओं के दाम आम लोगों की पहुंच से दूर हैं । एक गरीब को रोटी जरूर चाहिए परन्तु रोटी खाने के लिए सब्जी नहीं चाहिए क्योंकि वह नमक के पानी में ही रोटी डुबो कर गुजारा कर लेता है और नमक के पानी के साथ ही चावल भी खा लेता है | जिन्दा रहने के लिए जरूरी उक्त छै वस्तुओं के दाम दिनोदिन बढ़ते ही जा रहे हैं जबकि महंगाई रोकने के वायदे पर ही 2014 मई में नई सरकार आयी थी |


     सब्जियों के दामों में उतार- चढ़ाव कुछ हद तक गरीब भी सह लेता है या वह सब्जी खरीदता ही नहीं | प्याज- टमाटर अधिक नहीं तो कम से भी गुजारा हो जाता है परन्तु जिन्दा रहने के लिए जरूरी इन छै वस्तुओं का तो कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं | सरकार ने इन छै वस्तुओं पर एक अट्ठनी कम करने के बजाय उलटे 16 रु की नमक की थैली भी 18 रु की कर दी है |  इन वस्तुओं के बढ़ते दामों पर नियंत्रण कौन करेगा ? ये वे गरीब हैं जो न बोल सकते हैं और न जलूस निकाल सकते हैं और शायद ये वोट बैंक पर भी असर नहीं डालते | बीपीएल कार्ड धारकों के अलावा इनकी संख्या करोड़ों में हैं | इन छै वस्तुओं के अभाव में यदि कोई गरीब मर भी जाए तो किसी को क्या फरक पढ़ना है | हमें ओडिशा का कालाहांडी क्षेत्र अभी भूला नहीं है जहां आम की गुठलियां और चूहे खाकर लोग जीवित रहे हैं |


     प्रातः या सायंकालीन सैर में अक्सर वरिष्ठ नागरिकों को देश की वर्तमान ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा करते देखा –सुना जाता है | सब एक स्वर- सुर में इस बढ़ती मंहगाई को सरकार की असफलता बताते हैं | कानों पर टकराने वाले चर्चा के कुछ शब्द हैं, “इस महंगाई का आभास हमें चुनाव के दौरान लग गया था जब हमने करोड़ों रुपये के बजट की बड़ी- बड़ी रैलियां देखी थी | उन रैलियों पर जो खर्च हुआ उसकी भरपाई तो होनी ही है |” ये शब्द सत्य प्रतीत होते हैं अन्यथा रातों- रात इन वस्तुओं के दाम क्यों बढ़ गए ? 


      कौन रोकेगा दाल, पेट्रोल, दवाई, सहित जीवन यापन की अन्य वस्तुओं के दामों को ? आखिर किसने दी व्यापारियों को दाम बढ़ाने की यह खुली छूट ? क्यों नहीं लगता बढ़ती महंगाई पर अंकुश ? वर्तमान चुनाव के माहौल में इसकी तो चर्चा भी नहीं है । कौन करेगा चर्चा ? टी वी चैनल प्रायोजित हैं और ऐंकर सुनियोजित । 


पूरन चन्द्र काण्डपाल 

02.05.2019


 


No comments:

Post a Comment