Sunday 5 May 2019

Gairsain : गैरसैण

खरी खरी -424 : एक दिन तो राजधानी गैरसैण जाएगी 


      उत्तराखंड की राजधानी गैरसैण बन गई होती तो करीब 2000 गांव भुतहा (उजड़ गए) नहीं होते । कौन है जिम्मेदार ? 10 मुख्यमंत्री जो हमेशा ही अपनी नौकरी बचाते रहे और बारी बारी से सत्ता रस पीते रहे । काश ! आज कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे जैसे लोग जिंदा होते तो 1921 की तरह आर- पार हो गई होती । इन पुरखों को नमन जो अंग्रेजों से लड़े और आज हमें अपने हक-हकूक के लिए देशी अंग्रेजों से लड़ना पड़ रहा है । बहुत ही दुःखद और शर्मनाक...


      जो मित्र मेरे शब्दों को राजनैतिक रंग देते हैं उन्हें मैं रोक नहीं सकता । कुछ मित्र घुमा-फिरा के गाली भी देते हैं । उन्हें धन्यवाद । मैं देश के सभी नेताओं से अपने सऊर के हिसाब से अपनी बात कहता हूँ । यह मेरा संवैधानिक अधिकार है । आज देश का चिंतन छोड़कर कुर्सी का चिंतन अधिक हो रहा है । स्मरण रहे जब कोई नेता कल कुर्सी पर नहीं रहेगा तो देखने वाली बात यह होगी कि लोग उसे कैसे याद करते हैं ? हम सब जानते हैं कि हम अपने पूर्व के 9 मुख्यमंत्रियों को कैसे याद करते हैं । लोग मेरी आलोचना करते हैं कि 'ये इसका विरोध कर रहा है, उसका विरोध कर रहा है ।' मैं हमेशा उनका विरोध करता हूं जो किये हुए वायदे को भूल जाते हैं, जिनकी कथनी और करनी में अंतर होता है । उत्तराखंड के साथ धोखा करने वालों को थोड़ी तो शर्म आनी चाहिए...


      इन चुनावों में भी राजधानी गैरसैण कूच करना मुद्दा नहीं बन सका । हम 42 शहीदों की आत्मा को शांत नहीं कर सके । जिम्मेवार हम सब हैं । उत्तराखंड के लोग भैंस के आगे बीन बजाते रहे हैं और आगे भी बजायेंगे । यह बीन लक्ष्य प्राप्ति  तक बजते रहेगी । उम्मीद पर खड़े हैं सभी उत्तराखंडी । देर-सबेर गैरसैण लक्ष्य पूरा होगा, भलेही हमारे सामने हो या हमारे चले जाने के बाद । जयहिन्द ।


पूरन चन्द्र काण्डपाल

06.05.2019


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