Monday 15 April 2019

U bhoot ni chhi : उ भूत नि छि

खरी खरी - 415 : उ भूत नि छी
('वह भूत नहीं था' सच्ची कहानी का कुमाउनी रूपांतर )

      वर्ष 1995 में म्यर पैलउपन्यास  ‘जागर’ हिंदी अकादमी दिल्ली क सौजन्य ल प्रकाशित हौछ जो बाद में ‘प्यारा उत्तराखंड’ अखबार में किस्तवार छपौ लै | जैल लै य देखौ वील यकैं भल बता | एक दिन महानगर दिल्ली में रत्ते पर उपन्यास क एक पाठक रेशम म्यार पास ऐ बेर बला, “कका आज दिन में तीन बजी हमार घर भूत कि जागर छ, म्येरि घरवाइ पर भूत नाचें रौ  | एक कम्रक मकान छ, बैठणक लिजी जागि न्हैति ये वजैल केवल आपूं कैं और एकाध सयाण झणी कैं बलूं रयूं | डंगरि आल, दास नि अवा | डंगरि बिना ढोल- हुड़क कै हात –पात जोड़ि बेर नाचि जांछ | आपूं जरूर अया |” तीन वर्ष पैली रेशमक ब्या हौछ | पांच लोगोंक य परिवार में इज- बौज्यू, एक भै, रेशम और वीकि घरवाइ छी | परिवार एक भौ लिजी लै तरसि रौछी |

       मि ठीक तीन बजे वां पुजि गोय | वां यूं पाँचोंक अलावा पड़ोसक द्वि जोड़ि दम्पति और डंगरिय मौजूद छी | धूप-दीप जगै बेर, डंगरिय कैं दुलैंच में बैठा और रेशमक बौज्यू जोड़ी हाथों कैं मुनाव पर टेकि बेर गिड़गिड़ाने कौं राय, “हे ईश्वर- नरैण, य म्यार घर में कसि हलचल हैगे ? को छ य जो म्येरि ब्वारि पर लैरौ | गलती हैगे छ त मिकैं डंड दे भगवन, यैक पिंड छोड़ |” डंगरिय कापण फैगोय और ब्वारि लै हिचकौल –हिनौल खेलें फैगेइ | ब्वारिक उज्यां चै बेर रेशमक बौज्यू जोरल बलाय, “हम सात हाथ लाचार छ्यूं, तू जो लै छै येकैं छोड़, मिकैं पकड़, मिकैं खा |” ऊँ डंगरियक उज्यां चानै बलाय, “तू देव छै, द्यखा आपणि करामात |” य बीच ब्वारि भैटी- भैटिये ख्वारक खोली बाव हलूनै डंगरियक तरफ सरकि गेइ | डंगरियल जसै उकैं बभूत लगूण चा उ बेकाबू घोड़िक चार बिदकि गेइ, यस लागें रय कि उ डंगरिय पर झपट पड़लि | डंगरिय डरनै बचाव मुद्रा में ऐ बेर म्ये उज्यां चां फै गोय  |

      य दृश्य देखि सब दंग रै गाय | रेशम म्येरि तरफ देखि बेर बलाय, “य त हद हैगे | यैक क्वे गुरु गोविन्द नि रय | यस डंगरिय नि मिल जो ये पर साव सेर पड़ो | परिवार कि परेशानी देखि म्यार मन में एक विचार आ और मि उठि बेर भ्यार जाणी द्वारक नजीक भैटि गोय | मील गंभीर मुखड़ बनूनै जोरल कौ, “बिना गुरुकि अन्यारि रात नि हुण चैनि ! बता तू कोछै ? को गाड़- गध्यार बै ऐ रौछे ? खोल आपण गिच | आदि-आदि..” म्येरि भाव- भंगिमा और बोल सुणि बेर सबै समझें फैगाय कि मि उ डंगरिय है ठुल डंगरिय छ्यूं | म्यार उज्यां चै बेर रेशम क बौज्यू बलाय, “परमेसरा बाट बते दे, म्यर इष्ट –बदरनाथ बनि जा |” मील उनुकैं इशारल चुप करा |

     मि रेशमकि घरावाइक उज्यां चै बेर बलायूं, “तू बलाण क्यलै नि रयै ? नि बलालै मि बुलवे बेर छोडुल | मसाण- भूतक इलाज छ म्यार पास |” उ नि बलाइ | मील रेशम उज्यां चै बेर जोरल कौ, “धुणि हाजिर कर दे सौंकार |”  रेशम-  “परमेसरा यां धुणि कां बै ल्यूं ?”  मि - “धुणि न्हैति तो स्टोव हाजिर कर दे |” रेशम तुरंत रस्या बै स्टोव, पिन और माचिस ल्ही बेर आ | म्यार इशार पर वील स्टोव जला | मि - “चिमट हाजिर कर दे सौंकार |” उ भाजि बेर गो और रस्या बै चिमट ल्ही आ | सबै समझें रौछी कि म्ये में द्याप्त औंतरी गो पर य बात निछी | डरल म्येरि हाव साफ़ है रैछी | मील ठान रैछी, अगर रेशम कि घरवाइ म्ये पर झपटली तो मि द्वार खोलि बेर भ्यार कुतिकि जूल |

      मील स्टोवक लपटों में चिमट लाल करनै रेशम कि घरवाइ उज्यां चै बेर कौ, “जो लै भूत, प्रेत, पिसाच, मसाण, छल, झपट तू य पार लै रौछे, अगर त्ये में हिम्मत छ तो पकड़ य लाल चिमट कैं, नतर मि खुद य चिमट कैं त्यार गिच में टेकि द्युल |” मी उकैं डरूणक लिजी कौं रौछी | लाल चिमट देखि रेशम कि घरवाइक हिलण बंद है गोय और उ ख्वार में साड़ी पल्लू धरनै सानी कै उतै बै पिछाड़ि खसिकि गेइ | आब मी बेडर है बेर जोरल बलाय, “जो लै तू य पर लै रौछिये आज त्वील य धुणि –चिमटक सामणि येक पिंड छोड़ि है | आज बै येक रुमन- झुमन, रुण –चिल्लाण, चित्त-परेशानी, शारीरिक- मानसिक क्लेश, रोग -व्यथा सब दूर हुण चैनी |” यतू कै बेर मील स्टोव कि हाव निकाल दी |

      जागर ख़तम है गेछी | उ डंगरियल मिकैं आपू है ठुल डंगरी समझि मुनव झुकै बेर म्यार उज्यां चानै हात जोड़नै कौ, “धन्य हो महाराज |” रेशम आपणि घरवाइ कैं अघिल ल्या और मिहूं बै उकैं बभूत लगवा | बभूत लगूनै मील उहैं कौ, “आज बै तू निरोग छै, निश्चिंत छै और बेडर छै | खुशि रौ, आपू कैं व्यस्त धर, कुछ पढ़ –लिख, खालि नि रौ और एक परमात्मा में विश्वास धर | भूत एक भैम छ,  कल्पना छ | खालि भैटि बेर बेकाराक, उल-जलूल विचार मन में पनपनी | येकै वजैल खालि दिमाग भूतक घर कई जांछ | जिन्दगीक एक मन्त्र छ कि कर्म करते रौ, व्यस्त रौ और भगवान में विश्वास धरो | यतू कै बेर मि चड़क उठूं और नसि आयूं  |

      य क्वे सोची समझी योजना नि छी | सबकुछ अचानक हौछ | कएक लोग मिकैं भूत साधक समझण फै गाय | भूत हय नै, साधुल कैकैं ? य एक भैम -रोग छ जो यौन वर्जना, डर, फिकर, आक्रामक इच्छाओं कि पुर नि हुणल  कुंठाग्रस्त बनै द्युछ और दबाव देखूण पर भावावेश में य रूप प्रकट है जांछ  | मनखी है क्वे ठुल भूत नि हुन | आज क्वे यसि जागि न्हैति जां मनखी नि पुजि रय | रेशम कि कहानि हमूकैं य बतै छ कि वीकि घरवाइ पर क्वे भूत नि छी | अंधविश्वास कि सुणी- सुणाई बातोंक घ्यर में उ कुंठित है गेछी | अघिल साल उनार घर एक भौ जन्म है गोछी | हमुकैं फल कि इच्छा नि करण चैनि और कर्म रूपी पुज में व्यस्त रौण चैंछ | अंधविश्वासक अन्यार कर्मयोगक उज्यावक सामणि कभै लै नि टिकि सकन | ( य सांचि कहानि म्येरि किताब ‘उत्तराखंड एक दर्पण -2007’ क आधार पर उधृत ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.04.2019

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