Sunday 14 April 2019

Andhshraddha : अंधश्रद्धा

खरी खरी - 414 : अंधश्रद्धा को समझना होगा

      अंधविश्वासियों ने बनारस को क्योटो नहीं बनने दिया और न बनने देंगे । उन्होंने तो कहा था, "मुझे गंगा ने बुलाया है और मैं काशी को क्योटो बनाऊंगा।"  गंगा वैसी की वैसी क्योंकि हम नहीं बदले । कहा जाता है कि एक अरसे पहले कई घंटों की पूजा-  आरती देख सिंजो आबे भी कह गये कि आपके पास इस तरह बरबाद करने के लिए बहुत समय है । आज भी गंगा सहित देश की नदियों में गंदे नाले तो मिल ही रहे गेन, अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग  दूध बहा रहे हैं और जमकर धार्मिक विसर्जन कर रहे हैं । काश !  यह दूध नदियों और मूर्तियों में बहने के बजाय किसी कुपोषित बच्चे के मुंह में जाता तो देश से कुपोषण दूर होता और देश का IMR (शिशु मृत्यु दर) कम होती । भारतमाता को अंधविश्वास से मुक्त करो दोस्तो, तभी हम विश्वगुरु बनेंगे । वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नजरअंदाज कर अंधश्रद्धा को पोषने के कारण  विश्व के 500 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है ।

     हमारा देश अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसा हुआ है । जहां देखो अंधविश्वास का बोलबाला है । टेलीविजन के सैकड़ों चैनलों में प्रतिदिन अंधविश्वास परोसा जाता है जिसके कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण को धक्का लगता है । समाज को आज भी शनि- राहु - केतु की डोर से उलझाये रखा गया है । हमें ऐसे तथाकथित गुरु - चेलों से बचना है जो सत्य स्वीकारने को तैयार  नहीं हैं । कहते हैं :-

जाका गुरु भी अन्धत्वा
चेला निरा निरंध,
अंध ही अंधा ठेलिया
दोऊं कूप पड़न्त ।

    अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग भारतमाता को कहां ले जाना चाहते हैं यह हमने सोचना है । भगवान तो प्रतीक के बतौर केवल एक बूंद दूध- जल की श्रद्धा से सन्तुष्ट हो जाते हैं फिर यह मूर्ति के ऊपर से होता हुआ दूध नाली में क्यों बह रहा है ? मंथन करेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा । आपके द्वारा किसी कुपोषित बच्चे को दिया गया दूध हमारे देश को ताकत देगा और भारत का IMR सुधरेगा ।  जयहिन्द ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.04.2019

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