खरी खरी - 414 : अंधश्रद्धा को समझना होगा
अंधविश्वासियों ने बनारस को क्योटो नहीं बनने दिया और न बनने देंगे । उन्होंने तो कहा था, "मुझे गंगा ने बुलाया है और मैं काशी को क्योटो बनाऊंगा।" गंगा वैसी की वैसी क्योंकि हम नहीं बदले । कहा जाता है कि एक अरसे पहले कई घंटों की पूजा- आरती देख सिंजो आबे भी कह गये कि आपके पास इस तरह बरबाद करने के लिए बहुत समय है । आज भी गंगा सहित देश की नदियों में गंदे नाले तो मिल ही रहे गेन, अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग दूध बहा रहे हैं और जमकर धार्मिक विसर्जन कर रहे हैं । काश ! यह दूध नदियों और मूर्तियों में बहने के बजाय किसी कुपोषित बच्चे के मुंह में जाता तो देश से कुपोषण दूर होता और देश का IMR (शिशु मृत्यु दर) कम होती । भारतमाता को अंधविश्वास से मुक्त करो दोस्तो, तभी हम विश्वगुरु बनेंगे । वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नजरअंदाज कर अंधश्रद्धा को पोषने के कारण विश्व के 500 शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी विश्वविद्यालय नहीं है ।
हमारा देश अंधविश्वास के मकड़जाल में फंसा हुआ है । जहां देखो अंधविश्वास का बोलबाला है । टेलीविजन के सैकड़ों चैनलों में प्रतिदिन अंधविश्वास परोसा जाता है जिसके कारण वैज्ञानिक दृष्टिकोण को धक्का लगता है । समाज को आज भी शनि- राहु - केतु की डोर से उलझाये रखा गया है । हमें ऐसे तथाकथित गुरु - चेलों से बचना है जो सत्य स्वीकारने को तैयार नहीं हैं । कहते हैं :-
जाका गुरु भी अन्धत्वा
चेला निरा निरंध,
अंध ही अंधा ठेलिया
दोऊं कूप पड़न्त ।
अंधश्रद्धा से वशीभूत लोग भारतमाता को कहां ले जाना चाहते हैं यह हमने सोचना है । भगवान तो प्रतीक के बतौर केवल एक बूंद दूध- जल की श्रद्धा से सन्तुष्ट हो जाते हैं फिर यह मूर्ति के ऊपर से होता हुआ दूध नाली में क्यों बह रहा है ? मंथन करेंगे तो उत्तर अवश्य मिलेगा । आपके द्वारा किसी कुपोषित बच्चे को दिया गया दूध हमारे देश को ताकत देगा और भारत का IMR सुधरेगा । जयहिन्द ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
15.04.2019
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