खरी खरी - 420 : सबूं क अलग अलग दयाप्त
गौंनू में मंदिरों कि कमी न्हैति
फिर लै मंदिर बनूं रईं,
हर साल वां जै बेर
घंटी - बाकर चढूं रईं ।
वां सबूं के अलग- अलग
नईं -पुराण दयाप्त देखीं रईं,
क्वे कैहूं क्ये नि कान
एक-दुसरै नकल करैं रईं ।
घंटी कि जाग कैं इस्कूल हुणि
एक बाल्टी लै ऐ सकछी,
बोरिया चेथाड़ में भैटी नना हूँ
एक चटाई लै ऐ सकछी ।
गरीब नना हैं स्टेसनरी
बस्त वर्दी बनैन लै ऐ सकछी,
इस्कूलाक पुस्तकालय हूँ
थ्वाड़ भौत किताब लै ऐ सकछी ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.04.2019
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