Saturday 9 January 2021

Chandra singh Rahi : चन्द्र सिंह राही

स्मृति - 551 : चन्द्र सिंह राही : प्रेम का जोगी, आज पुण्यतिथि

     राही जी ( चन्द्र सिंह राही) 10 जनवरी 2016 को दिवंगत हुए । आज 10 जनवरी 2021 को उनकी 5 वीं पुण्यतिथि है | जब वे 73 वर्ष के ही थे परन्तु यात्रा का काल चक्र पूर्ण हो चुका था | विगत दो दशकों से मैंने कई बार उनके गीत सुने | गीत प्रस्तुति का उनका एक निराला ही अंदाज था | याद करिए उनकी गजल “कुतगली ना लगौ |” उन्हें हुड़का सहित कई वाद्यों की महारथ हासिल थी | वे लोक गायक तो थे ही एक गीतकार भी थे | चार दशकों तक उन्होंने लोकगायकी में लोगों का मनोरंजन किया | ‘हिलमा चांदी को बटना, भाना हो रंगीली भाना , स्वर्ग तारा य जुनाली राता.., जैसे कई गीतों कों उन्होंने स्वर दिया जिनके मुखड़े भुलाए नहीं भूलते |

      राही जी ने ‘दिल को उमाल, रमछौल, धै और गीत गंगा’ आदि पुस्तकैं भी लिखी | गीत गंगा 126 गढ़वाली गीतों का संग्रह है जो 2010 में प्रकाशित हुआ | इस गीत गंगा में नदी, पहाड़, जंगल, घर-आगन, लोक  जीवन, पशु-पक्षी, मौज-मस्ती, हंसी- खुशी और मिलन- बिछोह के गीत हैं | राही जी अपनी भाषा के प्रति समर्पित थे |  मंच संचालकों को कई बार वे अपने एक अद्भुत अक्खड़ अंदाज में कह भी देते थे, “आपणी भाषा में बोलो यार, कतु क मिठी भाषा छ हमरि” |  वे कन्हैयालाल डंडरियाल सहित कई गढ़वाली कवियों की चर्चा भी करते थे | ‘ प्रेम को जोगी’ गीत में वे कह गए, “ तेरा प्रेम को भूको छौं मुखडी ज़रा बतै जा |”

    राही जी की कला का श्रृंगार भी हुआ | उन्हें कएक सम्मान भी मिले | इनमें एक सम्मान उत्तराखंड भाषा संस्थान, उत्तराखंड सरकार, देहरादून से भी उन्हें वर्ष 2011-12 का ‘बालम सिंह जनौटी लोकभाषा सम्मान’ 12  दिसंबर 2011 को प्रदान किया गया | हम समारोह में साथ ही थे | आयोजन के समापन के बाद उस दिन वे मेरे साथ दून हॉस्टल देहरादून  से रेलवे स्टेशन तक साथ आए | इस दौरान उनसे उनके गीत गायन यात्रा संबंधी कई बातें हुई | राही जी वास्तव में प्रेम के भूखे थे जिसे हमने उनके गीत, संगीत और भाषा व्यवहार में लहलहाते देखा | राही जी की जीवन यात्रा भलेही थम गयी परन्तु उनकी ‘गीत गंगा’ की गंगोत्री कभी नहीं थमेगी | राही जी को विनम्र श्रद्धांजलि |

पूरन चन्द्र काण्डपाल, 


10.01.2021

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