Friday 8 January 2021

Bhagwan bhi surakshit naheen : भगवान भी सुरक्षित नहीं

बिरखांत- 352 : भगवान भी नहीं सुरक्षित

      अपने चिर परिचित चनरदा वही अपने अल्लहड़ अंदाज में मिलते रहते हैं | उनके पास कई वर्षों के समाचार पत्रों की वे कतरनें  रहती हैं जिनमें मंदिरों में चोरी की खबरें छपी होती हैं | चनरदा बताने लगे, “अरे साब इधर-उधर की तो खूब पढ़ते-लिखते हो ज़रा इन कतरनों को भी देखो | देश का कोई ऐसा मंदिर नहीं होगा जहां से आजतक कभी न कभी, कुछ न कुछ चोरी नहीं हुआ होगा | इन वर्षों में कर्णप्रयाग के चंडिका मंदिर से आठ छत्र; हल्द्वानी गौजाजाली मन्दिर से घंटे, कलश, नाग, त्रिशूल, नथ, हार, मुकुट, माला ,दीपक स्टैंड, लोटा और नकदी; केदारनाथ से मुकुट; दिल्ली के प्रशांत विहार बालाजी मंदिर से करीब बीस लाख मूल्य की वस्तुएं, जहांगीरपुरी से राम- जानकी- 90लक्षमण की मूर्ति |

      इसी तरह दिल्ली के भजनपुरा, वैशाली, सूरजमल पार्क, जगतपुरी, पांडव नगर, महरौली, वेलकम, आन्दंद विहार, दिलशाद गार्डन, सप्तऋषि गार्डन सहित पिलखुवा, सिरोही आदि स्थानों के मंदिरों में भी चोरी हुई | आए दिन धार्मिक स्थलों में अपराधिक घटनाएं होती रहती हैं | इन कुकृत्यों को अंजाम देने वालों में यदा कदा यहां के सेवादारों अथवा ‘उपासकों’ की मिलीभगत भी होती है | अब तो धर्मस्थलों के तथाकथित सेवादार महिलाओं के साथ वह कृत्य भी करने लगे हैं जिसकी चर्चा करना भी शर्मनाक है । हाल ही में ( 5 जनवरी 2021) बदायूं उ प्र की घटना बहुत ही दुखद है ।

     पूजा स्थलों की प्रत्येक वस्तु शक्ति का प्रतीक मानी जाती है | आस्था एवं शक्ति की प्रतीक जब ये मूर्तियां चोरी हो जाती हैं या धर्मस्थलों का खजाना लूटा जाता है या किसी महिला के साथ यहां अमानवीय कृत्य होता है तो मन में प्रश्न उठने लगता है कि भगवान ने स्वयं को या वहां की वस्तुओं को या उस महिला को बचाते हुए इन राक्षसों को दण्डित क्यों नहीं किया ? उस नरपिशाच पर स्वयं वह मूर्ति ही गिर जाती, पंखा या कोई अन्य वस्तु गिर जाती, उसे ठोकर ही लग जाती |

      ‘यह कलियुग है’ कह कर लोग अपनी श्रधा पर कोई खरोंच नहीं लगने देते लेकिन धर्मस्थलों में भगवान का इन नरपिशाचों पर प्रहार नहीं करना श्रधालुओं को अखरता जरूर है | धर्मस्थलों के परिसर की कोई दुर्घटना या धर्मस्थल की यात्रा के दौरान की दुर्घटना अन्य स्थानों की दुर्घटना से कहीं अधिक अखरती है | इन सब घटनाओं से मन में कबीर के भजन “मोको कहां ढूंढें रे बन्दे’ का स्मरण हो आता है | कबीर ने भगवान के मूरत-तीरथ, जप- तप, व्रत-उपवास, काबा-कैलाश, क्रियाक्रम, जोग- संन्यास में नहीं होने की बात कही है | उनका मानना है कि एक अच्छे- सच्चे इंसान के मन में ही भगवान वास करते हैं | सत्य भी यही है भगवान पूजा स्थलों में नहीं होते | पूजा स्थल तो केवल भगवान् का स्मरण करने की एक जगह है जहां ईश्वर स्मरण के साथ अन्य आगंतुकों से भी मिलाप हो जाता है |”

     ( ये चनरदा कौन हैं ? चनरदा लेखक का वर्षों पुराना वह कर्म पुजारी किरदार है जो किसी धर्म- संप्रदाय -जाति- मजहब का न होकर सबसे पहले एक इंसान है, एक भारतीय है और समाज में व्याप्त विषमता, वैमनस्यता, असमाजिकता, जुगाड़बाजी, चाटुकारिता, अन्धविश्वास, अंधभक्ति और असहिष्णुता पर गांधीगिरी के साथ अपना मुंह खोलने की हिम्मत से सराबोर है | )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
08.01.2021

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