खरी खरी - 779 : बाज और तीरंदाज
देश के लगभग सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिलाओं पर दुराचार घटने का नाम नहीं ले रहे । दुराचारी क़ानून से बेखौप हैं । मीडिया हर रोज महिला अपमान, दुष्कर्म, पड़ताड़ाना, चेन स्नैचिंग, छेड़छाड़ और महिला हत्या के समाचारों से भरा रहता है । राज्यों में किसी भी दल की सरकार हो, महिला सुरक्षा सब जगह खतरे में है । ऐसा क्यों हो रहा है ? कैसे और कब थमेगा यह सामाजिक कलंक ? बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ का नारा तो लगा परन्तु महिला अपराध बढ़ गए ।
वर्ष 2012 के घृणित निर्भया कांड के दोषियों को फांसी भी हो गई फिर भी महिला अपराध नहीं घटे। कई राज्यों में महिला अपराध चरम पर हैं जिससे देश व्यथित है । राजनैतिक संरक्षण से असामाजिक तत्व गुलजार हैं । साज़िश करके बड़ी साफगोई के साथ दुष्कर्मियों को बचाया जाता है । इस साज़िश की शिकार पीड़िताओं को ही बनाया जाता है । इस दौर से डरी - सहमी महिला की व्यथा-वेदना और सिसकियों से हमारी संवेदना पिघलती क्यों नहीं ? कई बार यह चर्चा में आ चुका है कि हमारा देश महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं है । महिलाओं की इस व्यथा से सभ्य समाज तब अधिक व्यथित होता है जब महिलाएं पूछतीं हैं -
'चीं चीं करती चिड़िया पूछे
कहां जाऊं मैं आज ?
ऊपर पसरा बाज का पंजा
नीचे घूरे तीरंदाज ।'
पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.01.2021
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