Saturday 24 October 2020

Roti ki kadr : रोटी की कद्र

खरी खरी - 718 :  रोटी की कद्र

     हम सब रोटी के लिए ही तो दर दर भटक रहे हैं । कहीं रोटी मिलती नहीं तो किसी को रोटी पचती नहीं । कोई किसी की आंच में रोटी सेक रहा है तो कोई रोटी को चौबाट में फेंक रहा है । किसी की रोटी भद्र नहीं है तो कहीं रोटी की कद्र नहीं है । कोई रोटी की बाट देख रहा है तो कोई रोटी के लिए जेब काट रहा है । कुछ लोग रोटी कमाने के लिए दौड़ रहे हैं तो कुछ रोटी पचाने के लिए दौड़ रहे हैं । सुबह से लेकर देर रात तक, कहीं कहीं तो रात भर भी लोग रोटी के लिए ही भाग रहे हैं । जिस आटे की रोटी देश का सबसे धनी आदमी खाता है उसी आटे की रोटी देश का सबसे गरीब आदमी भी खाता है । जब यही रोटी बेकद्री से सड़क पर पड़ी रहती है तो कई बातें उस व्यक्ति के दिल को चीरने लगती हैं जो दो जून की रोटी के लिए कभी तड़फा हो या तड़फ रहा हो ।

        महानगर की एक पॉश कालोनी के पार्क के गेट पर फेंकी हुई रोटियों के ढेर हम प्रतिदिन देखते हैं । प्रश्न उठता है किसने फेंकी होंगी इतनी बेकद्री से ये रोटियाँ ? जिस घर से इन्हें फेंका गया होगा क्या वहाँ कोई रोटी की कद्र नहीं जानता होगा ?  शायद उसे रोटी कमाने का ज्ञान नहीं होगा या वह अब तक कभी भूख से तड़फा नहीं होगा । हम दिन में कम से कम तीन बार तो अपने पेट की आग इस रोटी से बुझाते हैं । एक बार रोटी न मिलने पर हमारी हालत बिगड़ने लगती है ।

        हमारे देश में आज भी करीब 20% लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं । कई लोग तो दिन में केवल एक बार की रोटी भी बड़ी मुश्किल से प्राप्त कर पाते हैं । मेरा मानना है रोटियाँ उसी घर से फेंकी जाती हैं जहाँ भोजन का अनुशासन नहीं है । जब रोटियाँ हिसाब से बनेंगी तो बचेंगी नहीं और जब बचेंगी नहीं तो फेंकी भी नहीं जाएंगी । वैसे भी सुबह की बची रोटी रात को और रात की बची रोटी वह व्यक्ति तो अवश्य खा सकता है जो जीवन में रोटी के लिए कभी न कभी तड़फा हो । रोटी हमारी जिंदगी है और रोटी ईश्वर का दिया हुआ एक अमूल्य उपहार है । हमें हमारे लिए रोटी उगाने वाले अन्नदाता कृषक को प्रणाम करते हुए रोटी की कद्र करनी चाहिए और रोटी नहीं फैंकनी चाहिए ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
23.10.2020

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