Wednesday 14 October 2020

Maryada purushotam shree Ram ;मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम

बिरखांत – 340 :  मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम 


 


       रामलीला के इस मौसम में श्रीराम का स्मरण ह्रदय से हो जाए तो अच्छा है | बताया जाता है कि श्री राम का जन्म आज से लगभग सात हजार वर्ष ( बी सी ५११४ )पूर्व हुआ | कुछ लोग इस पर भिन्नता रखते हैं | पौराणिक चर्चाओं में अक्सर मतान्तर देखने-सुनने को मिलता ही है | श्रीराम की वंशावली की विवेचना में मनु सबसे पहले राजा बताये जाते हैं | इक्ष्वाकु उनके बड़े पुत्र थे |  आगे चलकर वंशावली में ४१वीं पीढ़ी में राजा सगर, ४५ वीं पीढ़ी में राजा भगीरथ, ६०वीं में राजा दिलीप बताये जाते हैं | दिलीप के पोते रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के पुत्र श्रीराम जो ६५वीं पीढ़ी में थे | 

     वाल्मीकि के राम मनुष्य हैं | तुलसी के राम ईश्वर हैं | कंबन ने ११वीं सदी में कंबन रामायण लिखी और तुलसी ने १६वीं सदी में रामचरित मानस | अल्मोड़ा से प्रकाशित ‘पुरवासी-२०१२’ में डा. एच सी तेवाड़ी (वैज्ञानिक) का लेख श्रीराम के बारे में कई जानकारी लिए हुए है | श्रीराम तेरह वर्ष की उम्र में ऋषि विश्वामित्र के आश्रम में गए | वहाँ से मिथिला नरेश जनक- पुत्री सीता से उनका विवाह हुआ  | २५ वर्ष (कुछ लोग १४ वर्ष भी कहते हैं ) की उम्र में उन्हें वनवास हुआ | १४ वर्ष वन में बिताने के बाद वे ३९ वर्ष की उम्र में अयोध्या लौटे | श्रीराम हमारे पूज्य या आदर्श इसलिए बन गए क्योंकि उन्होंने समाज के हित में कई मर्यादाएं स्थापित की | उन्होंने माता-पिता की आज्ञा मानी, हमेशा सत्य का साथ दिया, पर्यावरण से प्रेम किया, अनुसूचित जाति के निषाद को गले लगाया, भीलनी शबरी के जूठी बेर खाए और सभी जन-जातियों से प्रेम किया | 

    एक राजा के बतौर राज्य की प्रजा को हमेशा खुश रखा | उन्होंने एक धोबी के बचनों को भी सुना और सीता का परित्याग कर दिया | सीता और धोबी दोनों ही उनकी प्रजा थे परन्तु सीता उनकी पत्नी और प्रजा दोनों थी जबकि धोबी केवल प्रजा था | लेख के अनुसार एक धारणा है कि भारत में जाति भेद आदि काल से चला आ रहा है और तथाकथित ऊँची-नीची जातियां हमारे शास्त्रों की ही देन है  | महर्षि वाल्मीकि इस धारणा को झुठलाते लगते हैं क्योंकि वह स्वयं अनुसूचित जाती से थे और इसके बावजूद सीता उनकी पुत्री की तरह उनके आश्रम में रहीं | स्वयं राजा श्रीराम ने उन्हें वहाँ भेजा था | राज-पुत्र लव -कुश महर्षि के शिष्य थे | यहां यह दर्शाता है कि श्रीराम की मान्यता सभी वर्ग के लोगों में सामान रूप से थी | आज हम मानस का अखंड पाठ करते हैं परन्तु उसकी एक पंक्ति अपने ह्रदय में नहीं उतारते | जो उतारते हैं वे श्रद्धेय हैं | हम समाज में आज भी राम के निषाद-शबरी को गले नहीं लगाते | जो लगाते हैं वे अधिक श्रद्धेय हैं | 

     संक्षेप में श्रीराम का वास्तविक पुजारी वह है जो उनके आदर्शों पर चले | हमारी समाज में कएक रावण घूम रहे हैं और कईयों के दिलों में रावण घुसे हुए हैं |  हम उस रावण का तो पुतला जला रहे हैं जबकि इन रावणों से सहमे हुए हैं | गांधी समाधि राजघाट पर मूर्ति स्तुति में विश्वास नहीं रखने वाले बापू के मुंह से निकला अंतिम शब्द ‘हे राम’ बताता है कि वे सर्वधर्म समभाव से वशीभूत थे और ‘ईश्वर-अल्लाह’ को एक ही मानते थे | हम भी श्रीराम का निरंतर स्मरण करें और ऊँच –नीच तथा राग- द्वेष रहित समाज का निर्माण करते हुए सर्वधर्म समभाव बनाकर अपने देश में मिलजुल कर भाईचारे के साथ रहने का प्रयत्न करें | 

पूरन चन्द्र काण्डपाल


15.10.2020


 


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