Tuesday 13 October 2020

Reet riwaj k thyakdaar :रीत रिवाज क थ्यकदार

खरी खरी - 712 : रीत- रिवाज क ठ्यकदार

मै -बाबू कि स्याव नि करि

बार दिन के क्वड़ करें रईं,

न्यूतपट बोलचाल न्हैति

फिर लै मुंडन करें रईं,

क्वड़ पांच-सात दिनक लै 

है सकूं पर को मानल ?

जै हुणी य बात कौला

उई गुरकि बेर आंख ताणल  ।

जसिके आठ घंट के ब्या

दिन में आदू घंट में है सकूं,

उसिके बार दिन क पिपव लै

पंछां-सतां दिन है सकूं ,

पर रीत -रिवाज क ठ्यकदार 

य बदलाव में टांग अड़ाल,

के न के नुक्त लगै बेर

आपणी मन कसि कराल ।

गौं में ब्या-काज लै

बाड़ मुश्किलल निभै रईं,

क्वे कैकि मदद निकरन

भैबेर धूं देखैं रईं,

न्यूति बलै बेर लै खाण हैं

नि ऐ दिन ऐंठी रौनी,

उनार दिलों में हमेशा

अन्यसाक किल घैटिये रौनी ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

14.10.2020

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