खरी खरी - 714 : पैंट फाड़ फैशन
आजकल हम देखते हैं कि युवक- युवतियां घुटने से नीचे और घुटने से ऊपर, जांघ के ऊपरी सिरे से थोड़ा नीचे तक, कई जगह से फटी जीन्स पहन कर खुलेआम घूम रहे हैं । सबसे पहले मैंने यह दृश्य मेट्रो ट्रेन में देखा । उसके बाद इसी तरह की फटी जीन्स पहने प्रेमी जोड़ों को मेट्रो स्टेसन की सीढ़ियों में सट कर गर्दन एक -दूसरे की ओर झुकाए बैठे देखा । जंतर मंतर की ओर गैरसैण के लिए धरना-प्रदर्शन के लिए जा रहा था तो रास्ते में भी कई फटेहालों को देखा । कुछ मित्रों से पूछा तो वे बोले, "सर ये फटीचर नहीं हैं, ये फटेहाल गरीब नहीं हैं ,ये फैशन के फरिश्ते हैं । बाजार में फटी पैंट पहनने का नया फैशन आ गया है ।" मैं सोचने लगा 'यदि कमर से ऊपर के फटे वस्त्र पहनने का फैशन भी आ गया तो तब देश का क्या होगा ?"
इसी सोच में मुझे अपने मिडिल स्कूल का जमाना याद आ गया जब मैं और मेरे जैसे कई छात्र तीन टल्ली (पैबंद) लगी सुरर्याव (पैंट) पहने स्कूल जाते थे । हमारे घरवाले पैंट फटने पर उस पर तुरन्त टल्ली लगवा देते थे । हम फटी पैंट पहन कर कभी बाहर नहीं गए । परन्तु आज जमाने की बलिहारी देखो युवा फैशन के नाम पर पैंट फाड़े सीना तान कर चल रहे हैं । वाह रे ! पैंट-फाड़ फैशन । युवतियों की फटी पैंट पर एकबारगी नजर पड़ते ही नजर झुक जाती है । मेरा आश्चर्य का ठिकाना तो तब नहीं रहा जब एक लड़का बोला, "अंकल इन फटी पैंटों की कीमत बिनफटी पैंटों से अधिक है, क्योंकि यह फैशन की फाड़ है ।"
अब तो फटी पैंटों को देख आश्चर्य भी नहीं होता, शायद नैनों ने समझ लिया है कि इस तरह के वस्त्र- फाड़ अंग-दिखाऊ नए नए फैशन आने वाले वक्त में देखने को मिलते रहेंगे और हमारी सभ्यता को मुँह चिढ़ाते रहेंगे । वस्त्र डिजायनर कहीं हमें पुनः उसी युग में तो नहीं ले जाना चाहते जिस युग में सबसे पहले मानव ने पेड़ों की छाल और पत्तों से शरीर ढकना सीखा था ?
पूरन चन्द्र काण्डपाल
17.10.2020
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