Saturday 22 August 2020

Roti aur Bhagwan : रोटी और भगवान

खरी खरी - 684 : रोटी और भगवान

     अक्सर हम सब देखते हैं कि जब भी कुछ घरों में रोटी और भगवान की फ़ोटो/तस्वीर फालतू हो जाती है तो उसको वे चौराहे पर या पार्क के कोने पर या किसी पेड़ के नीचे फेंक देते हैं । उसके बाद कुत्ते या आवारा पशु उस स्थान पर आते हैं । इन पशुओं का मन हुआ तो रोटी खाते हैं अन्यथा वहीं इर्द-गिर्द मल-मूत्र करके चल पड़ते हैं ।

     रोटी की बात करें तो जिसके लिए पूरी दुनिया दौड़ रही है, जिसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते, जिसके लिए हम दर-दर की ठोकरें खाते हैं उसे लोग इस तरह क्यों फैंक देते हैं ? पहले तो रोटी उतनी ही बने जितनी चाहिए । यदि बच भी जाये तो उसका सदुपयोग अगले भोजन में कर लें । हम सुबह रोटी लेकर कार्यस्थल पर खाते रहे हैं तब तो यह बासी नहीं होती । फिर भी रोटी फैंकने के बजाय किसी गौशाला तक पहुंचा दी जाय ।

      भगवान तो बेचारे अनाथ हैं । टूट गए, पुराने हो गए या खंडित हो गए उनको तो लावारिश होना ही है । पता नहीं लोग जिस फोटो-मूर्ती पर रात-दिन नाक रगड़ते हैं, उसकी पूजा करते हैं उसे इस तरह गंदगी में क्यों छोड़ देते हैं । यह हमारे देश की कैसी धार्मिक शिक्षा है ?  किसी ने तो उन्हें ऐसा करने को कहा है । किसी भी मूर्ति-फोटो को इस तरह आवारा पशुओं के बीच उसका निरादर करते हुए छोड़ने के बजाय उसे भू-विसर्जन कर देना चाहिए अर्थात किसी पेड़ के नीचे या साफ जगह पर  उसे तोड़कर जमीन में दबा देना चाहिए । जल-विसर्जन में भी वह मिट्टी में ही मिलेगी । अंधविश्वास - जड़ित प्रथा-परम्परा की जंजीरों से हमें अपने को मुक्त करना है तभी हम अपनी अगली पीढ़ी के लिए जलस्रोतों और नदियों को बचा पाएंगे तथा श्रद्धा का भी सम्मान कर सकेंगे ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

23.08.2020

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