Tuesday 18 August 2020

Dharmik hone ka dikhawa : धार्मिक होने का दिखावा

खरी खरी - 681 : धार्मिक होने का दिखावा

      आज धार्मिक आडम्बर हमारी जीवन-शैली बन गए हैं । हम प्रतिदिन किसी न किसी धार्मिक आयोजन में सहभागिता निभाते हैं । वहां हम ऐसा अभिनय करते हैं जैसे कि हम एक अच्छे इंसान हैं जिसे अपने पड़ोस, समाज और देश की बहुत चिंता है । हम देश के प्रत्येक कानून का बखूबी आदर करते हैं और हमने स्वयं में सुधार कर लिया है ।

     हमें इस सत्य को स्वीकार करना चाहिए कि हम पूरी तरह से दिखावे की जिंदगी जी रहे हैं और बाजार संस्कृति के अधीन होकर सामाजिकता, नैतिकता, देश-प्रेम, पड़ोस-प्रेम, परोपकार, कर्तव्यपारायणता, ईमानदारी , धैर्य, संयम, सहनशीलता सहित जीवन की अमूल्य निधियों को तिलांजलि दे चुके हैं । हम चोरी की बिजली से धार्मिक पंडाल की जगमगाहट करते हैं और आस्था के नाम पर सड़क या पार्क किनारे अवैध धार्मिक निर्माण करते हैं । ध्यान से देखने पर इस तरह की कई कानून अवहेलना आपको अपने ही क्षेत्र में दिखाई देंगी । हम प्रत्येक दिन सोसल मीडिया में चाहे वाह फेसबुक हो या वॉट्सएप कोई न कोई भगवान की मूर्ति का कट पेस्ट फारवर्ड करते हैं । क्या भगवान मोबाइल के अंदर ही पूजे जाने लगे हैं । भगवान का नाम लेकर अपना कर्म करना ही सबसे बड़ी भगवान की पूजा है जो श्रीमद् भगवद गीता में भी लिखा है । कुछ लोग तो इतनी जगह भगवान को फारवर्ड करने की कसम भी देते हैं । इस तरह भगवान खुश नहीं होते । कृपया मंथन जरूर कीजिए । मोको कहां ढूंढे रे बंदे, मैं तो तेरे पास में ।

     हमें धर्म के अर्थ को समझते हुए दिखावे के आडंबरों में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए और स्वयं में बदलाव लाना चाहिए । कम से कम ऐसे ढकोसलों से तो बचना चाहिए जिससे आपके इर्द-गिर्द के लोगों के जीवन में बाधा पड़ती हो । जन- पीड़क दिखावा अनैतिक ही नहीं अपराध भी है । कुछ तथाकथित धार्मिक लोगों के व्यवहार से सभी श्रद्धालुओं की बदनामी होती है जो बहुत ही निंदनीय है । भगवान या इस धरती को हम एक पौधा भी तो अर्पित कर सकते हैं । हमारे देश में विश्व की तुलना में प्रति व्यक्ति बहुत कम पेड़ हैं ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.08.2020

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