Wednesday 26 August 2020

Ek muhalle ka 15 August : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

बिरखांत- 335 : एक मुहल्ले का 15 अगस्त

       कुछ हम-विचार लोगों ने मोहल्ले में 15 अगस्त मनाने की सोची | तीन सौ परिवारों  में से मात्र छै लोग एकत्र हुए | (जज्बे का कीड़ा सबको नहीं काटता है ) | चनरदा (लेखक का चिरपरिचित जुझारू किरदार ) को अध्यक्ष बनाया गया | बाकी पद पाँचों में बट गए | संख्या कम देख एक बोला, “इस ठंडी बस्ती में गर्मी नहीं आ सकती | यहां कीड़े-मकोड़ों की तरह रहो और मर जाओ |  यहां किसी को 15 अगस्त से क्या लेना-देना | दारू की मीटिंग होते तो मेला लग गया होता | चलो अपने घर, हो गया झंडा रोहण |” दूसरा बोला, “रुको यार | छै तो हैं, धूम-धड़ाके से नहीं मानेगा तो छोटा सा मना लेंगे और मुहल्ले के मैदान के बीच एक पाइप गाड़ कर फहरा देंगे तिरंगा |”  सबने अब पीछे न हटने का प्रण लिया और योजना तैयार कर ली | अहम सवाल धन का था सो चंदा इकठ्ठा  करने मन को बसंती कर, इन मस्तों की टोली चल पड़ी |

           स्वयं की रसीदें काट कर अच्छी शुरुआत की | चंदा प्राप्ति के लिए संध्या के समय प्रथम दरवाजा खटखटाया और टोली के एक व्यक्ति ने 15 अगस्त की बात बताई, “सर कार्यक्रम में झंडा रोहण, बच्चों की प्रतियोगिता एवं जलपान भी है | अपनी श्रधा से चंदा दीजिए |” सामने वाला चुप परन्तु घर के अन्दर से आवाज आई, “कौन हैं ये ? खाने का नया तरीका ढूंढ लिया है | ठगेंगे फिर मौज-मस्ती करेंगे |” चनरदा बोले, “नहीं जी ठग नहीं रहे, स्वतंत्रता सेनानियों और शहीदों को याद करेंगे, बच्चों में देशप्रेम का जज्बा भरेंगे, भाग लेने वाले बच्चों को पुरस्कार देंगे जी |” फिर अन्दर से आवाज आई, “ ये अचनाक इन लोगों को झंडे के फंडे की कैसे सूझी ? अब शहीदों के नाम पर लूट रहे हैं | ले दे आ, पिंड छुटा इन कंजरों से, अड़ गए हैं दरवाजे पर |” बीस रुपए का एक नोट अन्दर से आया, रसीद दी और “धन्यवाद जी, जरूर आना हमारे फंडे को देखने, भूलना मत | 15 अगस्त, 10 बजे, मुहल्ले के मैदान में” कहते हुए चनरदा टोली के साथ वहाँ से चल पड़े

         खिसियाई टोली दूसरे मकान पर पहुँची और वही बात दोहराई | घर की महिला बोली, “वो घर नहीं हैं | लेन-दें वही करते हैं |” दरवाजा खटाक से बंद | टोली उल्टे पांव वापस | टोली के अंतिम आदमी ने पीछे मुड़ कर देखा | उस घर का आदमी पर्दे का कोना उठाकर खाली हाथ लौटी टोली को ध्यान से देख रहा था | टोली तीसरे दरवाजे पर पंहुची | बंदा चनरदा के पहचान का निकला और रसीद कटवा ली | चौथे दरवाजे पर अन्दर रोशनी थी पर दरवाजा नहीं खुला | टोली का एक व्यक्ति बोला, “यार हो सकता है सो गए हों या बहरे हों |” दूसरा बोला, “अभी सोने का टैम कहां हुआ है | एक बहरा हो सकता है, सभी बहरे नहीं हो सकते |” तीसरा बोला, “चलो वापस |” चौथा बोला, “यार जागरण के लिए नहीं मांग रहे थे हम | यह तो बेशर्मी की हद हो गई, वाह रे हमारे राष्ट्रीय पर्व |” पांचवे को निराशा में मजाक सूझी| बोला, “यह घोर अन्याय है | खिलाफत करो | इन्कलाब जिंदाबाद |” हंसी के फव्वारे के साथ टोली आगे बढ़ गई |

       इस तरह 10 दिन चंदा संग्रह कर तीन सौ परिवारों में से दो सौ ने ही रसीद कटवाई और कार्यक्रम- पत्र मुहल्ले में बांटा गया | 15 अगस्त की पावन बेला आ गई | मैदान में एक छोटा सा शामियाना दूर से नजर आ रहा था | धन का अभाव इस आयोजन में स्पष्ट नजर आ रहा था | लौह पाइप पर राष्ट्र-ध्वज फहराने के लिए बंध चुका था | देशभक्ति गीतों की गूंज ‘हम लाये हैं तूफ़ान से., आओ बच्चो तुम्हें दिखायें., छोड़ो कल की बातें.. दूर-दूर तक सुनाई दे रही थी | टोली के छै व्यक्ति थोड़ा निराश थे पर हताश नहीं थे | इस राष्ट्र-पर्व के प्रति लोगों की उदासीनता का रोना जो यह टोली रो रही थी उसकी सिसकियाँ देशभक्ति गीतों की गूंज में दब कर रह गई थी |

           टोली का एक व्यक्ति बोला, “इस बार जैसे-तैसे निभ जाए तो आगे से ये सिरदर्दी भूल कर भी मोल नहीं लेंगे |”  चनरदा ने उसे फटकारा, “ चुप ! ऐसा नहीं कहते, तिरंगा मुहल्ले में जरूर फहरेगा और हर कीमत पर फहरेगा |” निश्चित समय की देरी से ही कुछ लोग बच्चों सहित आए | अतिथि भी देर से ही आए और चंद शब्द मंच से बोल कर चले गए | प्रतियोगिताएं शुरू हुईं | सभी पुरस्कार चाहते थे इसलिए निर्णायकों पर धांधली, बेईमानी और भाईबंदी करने के आरोप भी लगे | कुर्सी दौड़ में महिलाओं ने रेफ्री की बिलकुल नहीं सुनी | सभी जाने-पहचाने थे इसलिए किसी से कुछ कहना नामुमकिन हो गया था | जलपान को भी लोगों ने अव्यवस्थित कर दिया | अध्यक्ष चनरदा ने सबको सहयोग के लिए आभार प्रकट किया |

        कार्यक्रम को बड़े ध्यान से देखने के बाद अचानक एक व्यक्ति मंच पर आया और उसने चनरदा के हाथ से माइक छीन लिया | यह वही व्यक्त था जिसने चंदे में मात्र बीस रुपए दिए थे | वह बोला, “माफ़ करना बिन बुलाये मंच पर आ गया हूं | उस दिन मैंने आप लोगों को बहुत दुःख पहुंचाया | मैं आपके जज्बे को सलाम करता हूं | आप लोगों ने स्वतंत्रता सेनानियों, शहीदों और देशप्रेम की बुझती हुई मशाल को हमारे दिलों में पुनर्जीवित किया है | मैं पूरे सहयोग के साथ आपके सामने खड़ा हूं | यह मशाल जलती रहनी चाहिए | हर हाल में निरंतर जलती रहनी चाहिए |”

        समारोह स्थल से सब जा चुके थे | हिसाब लगाया तो आयोजन का खर्च चंदे से पूरा नहीं हुआ | सात लोगों ने मिलकर इस कमी को पूरा किया | स्वतन्त्रता दिवस सफलता से मनाये जाने की खुशी इन्हें अवश्य थी परन्तु अंत: पीड़ा से पनपी एक गूंज भी इनके मन में उठ रही थी, ‘सामाजिक कार्य करो, समय दो, तन-मन-धन दो और बदले में बुराई लो, कडुवी बातें सुनो, निंदा-आलोचना भुगतो और ‘खाने-पीने’ वाले कहलाओ | शायद यही समाज सेवा का पुरस्कार रह गया है अब |’ तुरंत एक मधुर स्वर पुन: गूंजा, ‘यह नई बात नहीं है | ऐसा होता आया है और होता रहेगा | समाज के चिन्तक, वतन को प्यार करने वाले, देशभक्ति से सराबोर राष्ट्र-प्रेमियों की राह, व्यर्थ की आलोचना से मदमाये चंद लोग कब रोक पाए हैं ?” ( इस बार गली - मुहल्ले और गांव में  कोरोना संक्रमण के कारण 15 अगस्त केवल प्रतीक के तौर पर या संदेश भेज कर ही मनाया गया । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल
27.08.2020

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