Monday 17 August 2020

ghee sankrant : घी संक्रांत

खरी खरी - 679 :  घी संक्रांत का घी और गनेल

     कल 16 अगस्त 2020 को उत्तराखंड में घी संक्रांत (घ्यों /घ्यू सग्यान ) का त्यार मनाया गया । दिन भर एक कटोरे में घी और चमच तथा नीचे अलग से एक गनेल (घोंघा) सोसल मीडिया में दिन भर फारवर्ड होते रहा । उन लोगों ने भी कट पेस्ट फारवर्ड किए जिन्होंने दिन भर घी पर हाथ नहीं लगाया होगा । साथ में यही भी कहा कि जो आज घी नहीं खाएगा वह अगले जनम में गनेल बनेगा । पूरा त्यार सोसल मीडिया में ही सिमटा रहा ।  घी संक्रांत के त्यार में सिर के बाल और माथे के बीच टीके की तरह घी लगाना शुभ माना जाता है । अच्छी फसल की खुशी और पशु धन की रौनक भी इस त्यार के पर्याय हैं । आर्थिक तंगी के कारण सभी घी नहीं खरीद सकते थे । घी के व्यापारियों ने इसके पीछे गनेल का तर्क जोड़ दिया ताकि लोग गनेल बनने की डर से घी अवश्य खरीदेंगे । अगले जन्म में कौन क्या बनता है या पिछले जन्म में वह क्या था यह कोई नहीं जानता परन्तु इस अगले जन्म के चक्कर में कुछ लोग आज भी लाभ कमा रहे हैं ।

      इसी तरह दीपावली में अमावस्या के दिन उत्तराखंड में (देश के अन्य भागों में भी ) कई जगह जुआ खेला (जुआ मेला ) जाता है । पुरुषों में यह मिथ फैलाया गया है कि जो आज जुआ नहीं खेलेगा वह अगले जनम में कुत्ता या उल्लू बनेगा और वह मनुष्य योनि में नहीं आएगा । लोगों ने इसे मैंसों का त्यार (आदमियों का त्यौहार ) कहना शुरु कर दिया।  दीवाली में गरीब से गरीब आदमी ने भी अपनी औकात के अनुसार कम से कम पांच - दस रुपए का जुआ खेलना जरूरी समझ लिया जो आज भी खेला जाता है । इस जुवे से आयोजकों को बहुत लाभ होता है, शिकार - शराब बिकती है, फड़ (अड्डा) वालों की उघाई होती है जबकि जेब जुवारियों की कटती है क्योंकि आदमी का त्यार हुआ अन्यथा कुत्ता बनने का डर जो हुआ । जुए में कई लोग जमीन या पशु भी हार जाते हैं । महाभारत का जुआ भी सभी को स्मरण होगा ।

     दीवाली में ही धन तेरस के नाम से यह मिथ चला दिया कि आज तो एक बर्तन जरूर खरीदना है या एक जेवर जरूर लेना है । धनवान तो कुछ भी खरीदेगा परन्तु गरीब क्या करेगा ? गरीब उधार या कर्ज लेकर एक थाली या गिलास खरीदेगा क्योंकि यह मिथ चलाया गया है कि आज खरीदारी नहीं करोगे तो लक्ष्मी जी नाराज हो जाएंगी । इस मिथ से लाभ हुआ दुकानदार को क्योंकि इस दिन रेट भी आसमान पर होते हैं । जरूरत का बर्तन तो कभी भी खरीदा जा सकता है फिर धन तेरस पर ही क्यों ?

      इसी तरह हमारे समाज में अलग अलग जगहों पर अलग अलग मिथ हैं । शराद में बामण भैजी को खिलाने का मिथ, मृत्यु भोज का मिथ, शनि को तेल लगाने का मिथ, ग्रहण में भोज्य पदार्थ फैंकने का मिथ आदि । किसी ने एक पेड़ रोपने का मिथ नहीं बनाया जिससे धरती का हरित श्रंगार होता ।  हमें मिथ से बचना चाहिए और कर्म करते हुए भगवान पर भरोसा करना चाहिए । कुछ लोग मुझ से असहमत हो सकते हैं । असहमत होना सबका अधिकार है लेकिन सत्य को ही प्रमाण के साथ स्वीकार करते हुए भेड़ चाल से बचना चाहिए । जिसके पास धन है खूब घी खाओ (कोलेस्ट्रॉल से बचना जरूरी ) परन्तु ऋण करके घी पीना नासमझी ही कहा जाएगा । मुझे याद है बचपन में घ्यू सग्यान के दिन मेरे बुलबुलियों पर घी का हाथ मेरी इज़ा ने भी लगाया था परन्तु उसने न कभी अपने सिर पर घी छुआ और न कभी घी चखा बल्कि घी बेचकर परिवार पर ही खर्च करते रही । ऐसी थी मेरी इजा ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
17.08.2020
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