Monday 9 March 2020

Holi par dhundh : होली पर धुंध

खरी खरी - 578 : होली पर जमी दंगे और कोरोना की धुंध

          इस वर्ष दो कारणों से होली का माहौल रंग विहीन है । पहला - अभी मात्र 15 ही दिन तो हुए हैं, दिल्ली में 23, 24 और 25 फरवरी की रात को दंगाइयों ने 53 निर्दोषों को बेमौत मार दिए । समाज के दुश्मनों ने सौहार्द बिगाडने का भरपूर कुप्रयास किया । सैकड़ों संपत्तियां फूंक दी गई और करोड़ों रुपए का नुक़सान कर दिया । जो 53 निर्दोष मारे गए वे न हिन्दू थे और न मुसलमान । ये सब भारतीय थे और अधिकांश गरीब थे जो दिल्ली में अपनी दर - गुजर कर रहे थे । इनके मां - बाप भी थे और पत्नी - बच्चे भी थे जिन्हें इनकी मौत ने जीते जी मार दिया । अभी तक की गिनती के अनुसार करीब एक सौ से अधिक मकान और 327 दुकान जलाए गए तथा 208 मकान क्षतिग्रस्त किए गए । लूट का कोई हिसाब नहीं है । बताया जा रहा है  दिल्ली सरकार हर स्तर पर मुआवजा दे रही है परन्तु जो मारे गए वे लौट कर नहीं आएंगे।  इन मरने वालों में एक लड़का उत्तराखंड का भी था । जिसे उत्तराखंडी समझकर नहीं बल्कि इंसान समझ कर अन्य 52 निर्दोषों की तरह मारा गया । यह तांडव किसने किया ?  इनको नफ़रत के जहर ने मारा । इस जहर को मनुष्य रूपी कुछ शैतानों ने दंगाइयों तक पहुंचाकर दिल्ली के एक हिस्से को तहस नहस कर दिया । इस वहशीपन ने सामाजिक सौहार्द को इतने गहरे जख्म दिए जिन्हें भरने में बहुत समय लगेगा ।  दिल्ली ने पहले भी कई बार कई तरह के जख्म झेले हैं ।

       होली को बदरंग करने वाला दूसरा दानव  कोरोना वायरस कोविड- 19 है जिसने दिल्ली में दस्तक दे दी है । देश में अभी तक 45 लोग इस संक्रामक रोग से ग्रसित हो गए हैं और कई निगरानी में हैं । चीन में इस रोग से 3100 से अधिक लोग मर चुके हैं और लगभग 92000 पीड़ित हैं । विश्व के लगभग एक सौ देशों में करीब 3900 लोग इस रोग से मर चुके हैं और 112000 लोग रोग ग्रसित हैं । हम अपने देश में भीड़ से बचें, स्वयं को खतरे में न डालें और अस्पतालों का कार्य न बढ़ाएं ।  हमारे स्वास्थ्य मंत्री ने भी सामूहिक आयोजन नहीं करने का अनुरोध किया है । सभी बातों में आदेश नहीं दिया जा सकता । इसे हल्के में न लिया जाय । यदि संक्रामक भड़क गया तो फिर क्या होगा ?  हमारी अपनी भी सामाजिक और राष्ट्रहित की जिम्मेदारी है । होली आते रहेगी और खेलते भी रहेंगे लेकिन इस बार माहौल ठीक नहीं होने से संयम बरतना होगा । ऐसी स्थिति में  इस बार घर बैठ कर होली की हार्दिक शुभकामना दी जा सकती है ।

       समाज में अब संवेदना धीरे धीरे कम हो रही है । कुछ लोगों ने  दिल्ली दंगों की इन 53 बेमौत की मौतों पर संवेदना नहीं दिखाई । विगत एक सप्ताह में कई जगह सामाजिक आयोजन भी किए गए जिन्हें टाला जा सकता था । इन आयोजनों में कमोवेश भीड़ भी पहुंची । स्मरण कराना चाहूंगा कि हमने 13 जून 1997 को उपहार सिनेमा दिल्ली में दम घुटने से 59 लोगों की मौत देखी थी और 18 नवम्बर 1997 को दिल्ली वजीराबाद पर यमुना में 28 स्कूली बच्चे डूबते देखे थे । (50 बच्चे गोताखोर अब्दुल सत्तार ने बचाए थे अन्यथा मंजर अधिक भयंकर होता ।) सामाजिकता का जीवंत उदाहरण देते हुए तब लोगों ने सांस्कृतिक आयोजन टाल दिए थे और शादियों में पटाखे -  बैंड नहीं बजे थे । पिछले ही वर्ष 8 दिसंबर 2019 को दिल्ली अनाज मंडी में आग लगने से 43 मौत हुई थी, तब भी दिल्ली बहुत गमगीन हुई थी ।

     हमारे उत्सव न मनाने से कोई वापस तो नहीं आएगा लेकिन हजारों पीड़ितों तक हमारा सन्देश अवश्य पहुंचेगा कि उनके दुख बांटने में समाज आगे आया और उन्हें अकेला नहीं छोड़ा । आज की सबसे बड़ी जरूरत है सामाजिक संवेदना को जिंदा रखकर आपसी सौहार्द बनाए रखना और देश की वर्तमान स्वास्थ्य समस्या में सरकार के संदेशों ( एडवाइजरी ) का सम्मान करते हुए स्वयं को इस संक्रामक रोग से बचाना । होली जरूर मनाएं परन्तु लगना चाहिए कि होली बिना हुड़दंग -हर्षोल्लास के बड़ी सादगी के साथ मनाई जा रही है । सभी को होली की हार्दिक शुभकामना ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
10.03.2020

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