Monday 2 March 2020

Aisi meri soch kahan :ऐसी मेरी सोच कहां

खरी खरी - 575 : ऐसी मेरी सोच कहाँ ?

मंदिर- मस्जिद राम- द्वंद
मुझे न जिंदा छोड़ेंगे,
राम-रहीम को एक मैं जानू
ऐसी मेरी सोच कहां ?

या दंगों में मेरा जाऊं
या आतंक का बनू ग्रास
जान बचाऊं औरों की मैं
ऐसी मेरी सोच कहां ?

या भगदड़ में दब के मरूंगा
या रोग -प्रदूषण करे शिकार
मजहब -जाति का दल दल पाटूं
ऐसी मेरी सोच कहां ?

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई
जैन पारसी बौद्ध बहाईं,
रक्त सभी का एक मैं जानूं
ऐसी मेरी सोच कहां ?

जप तप पूजा पाठ का राग
जीवन भर अलापता  गया,
कर्म को ही पूजा में जानू
ऐसी मेरी सोच कहां ?

रुढ़िवाद और अंधविश्वास के
सांकल में हूं जकड़ा गया,
काटूं सांकल मुक्ति पाऊं
ऐसी मेरी सोच कहां ?

शहीद हुए जो मातृभूमि पर
उनको तो में भूल गया,
स्मृति में उनके शीश झुकाऊं
ऐसी मेरी सोच कहां ?

खाली हाथ यहां आया अकेले
ऐसे ही मैं जाऊंगा,
जीवन चार दिनों का जानू
ऐसी मेरी सोच कहां ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल
03.03.2020

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