Monday 1 November 2021

Uttrakhandi sansthayen : उत्तराखंडी संस्थाएं

खरी खरी - 952 : दिल्ली में उत्तराखंडी संस्थाएं

      राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अनुमान लगाकर लोग बताते हैं कि यहां लगभग 25 से 30 लाख तक उत्तराखंड के लोग रहते हैं जो दिल्ली की आबादी ( 1.9 cr  वर्ष 2011 ) का 7वां हिस्सा बताया जाता है । इस जनसंख्या की कोई ऑपचारिक गिनती नहीं है । उत्तराखंड एकता मंच के नाम से 20 नवंबर 2016 को  दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली भी उत्तराखंड समाज ने की । वहां लोग आए परंतु कितने लोग आए उसका भी अनुमान नहीं लगाया जा सका । ( कृपया किसी को ज्ञात है तो बताने का कष्ट करें ।) इतना जरूर है कि यह भीड़ अनुमानित जनसंख्या के हिसाब से बहुत कम थी क्योंकि रामलीला मैदान की कैपेसिटी लगभग एक लाख से अधिक बताई जाती है । दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंडी जनसंख्या की करीब 400 से 500 तक (अनुमानित ) सामाजिक संस्थाएं बताई जाती हैं । इनकी भी गिनती किसी ने  नहीं की हैं लेकिन उत्तराखंडी समाज की संस्थाएं दिल्ली के कोने - कोने में या हर गली - मोहल्ले में हैं । इन संस्थाओं में पंजीकृत और अपंजीकृत दोनों प्रकार की संस्था हैं जो अपनी संस्कृति, भाषा, त्यौहार और रीति - रिवाजों को सिंचित करते रहते हैं । यही उत्तराखंड समाज की एक बहुत बड़ी पहचान है ।

         पंजीकृत संस्थाओं में अधिकांश संस्थाएं पंजीयन कानून 1860 के हिसाब से निरंतरता नहीं बनाए रखती । प्रत्येक पंजीकृत संस्था को प्रतिवर्ष 31 मार्च को बैलेंस सीट और बैंक खाते के परिचालन का विवरण अपनी संस्था के सदस्यों को समिति की आम बैठक में देना होता है । यही नियम प्रत्येक RWA के लिए भी होता है । हम सब कई ऐसी संस्थाओं को जानते हैं जो पंजीकृत केवल लेटर हेड में हैं जबकि जमीन में उनकी कभी कोई क्रियान्वयन गतिविधि नजर नहीं आई । इनमें कुछ ऐसी संस्थाएं भी हैं जिनको दो दसक से भी अधिक हो गए हैं । पता नहीं संस्था है भी या नहीं परन्तु भूतकाल में कभी संस्था के पदाधिकारी रहे कुछ व्यक्तियों के नाम यदा कदा कुछ मंचों से लिए जाते हैं, तब पता लगता है कि अमुक संस्था भी कहीं न कहीं है या थी ।

        कुछ मित्रों को इस बात का पता नहीं है कि वार्षिक ऑडिट, बैलेंस शीट और संस्था में यदि कुछ बदलाव हुआ है तो इसकी सूचना पंजीयक सोसाइटी को देना आवश्यक होता है अन्यथा उनका पंजीयन रद्द हो जाता है । पुनः पंजीयन के लिए फिर नए सिरे से पूरी कार्यवाही करनी होती है । सभी मित्रों से अनुरोध है कि यदि आपके पास दिल्ली एनसीआर में उत्तराखण्डियों की जनसंख्या और सामाजिक संस्थाओं की अनुमानित संख्या ज्ञात हो तो साझा करने का कष्ट करें । संस्थाओं को जीवंत रखना आसान कार्य नहीं है । अपने समाज के लिए जनहित में प्रतिबद्ध इन सभी संस्थाओं को साधुवाद ।

पूरन चन्द्र कांडपाल


02.11.2021


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