खरी खरी - 969 : घरवाइकि भक्ति
भ्यार भलेही सबूं हैं
खूब बागै चार गुगौ,
घर आते ही भिजाई
बिराउ जास बनि जौ ।
घरवाइक सामणि फन फन
नि करो, मुनव कनौ,
खांहूँ नि लै बनै सकना
भान तब लै चमकौ ।
साग-पात सौद पत्त ल्हीहूँ
उ दगै हमेशा बाजार जौ,
समान उ आफी ख़रीदलि
तुम चुपचाप झ्वल पकड़ि
वीक पिछाड़ि बै ठाड़ हैरौ ।
अगर चांछा हमेशा भलि भांत
चलो गृहस्थी कि गाड़ि,
तो टैम टैम पर ल्याते रौ
वीक मनकसि भलि भलि साड़ि।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
30.11.2021
No comments:
Post a Comment