Monday 8 November 2021

Sapanon ka uttrakhand : सपनों का उत्तराखंड

खरी खरी -  957 :  हमारे सपनों का उत्तराखंड ?

     जब मैं प्राइमरी पाठशाला का विद्यार्थी था ( 1954-59 ), स्वतंत्रता दिवस के दिन स्कूल से प्रभात फेरी निकाली जाती थी जो स्थानीय गांवों से होते हुए पुनः स्कूल में आती थी | प्रभात फेरी में गीत थे “क्या सुहाना वक्त है कैसा मुवारक राज है, राजेन्द्र जी के सिर पर देखो विराज ताज है”, “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भलेही जावे” आदि ।

   काल का पहिया घूमते हुए 42 शहीदों की धधकती चिताओं की रोशनी में 9 नवम्बर 2000 को देवेगौड़ा जी घोषित (15 अगस्त 1996) उत्तराखंड बन गया | आशा, आकांक्षा, अपेक्षा और उम्मीदों के उत्तराखंड का हमने ढोल- नगाड़े बजाकर और गीत- कविताओं के साथ जोरदार स्वागत किया | राज्य तो बन गया परन्तु शुरुआत कुछ अटपटी हुई | भूमिये के थान में गलत पत्थर थाप दिया | नए राज्य की बागडोर उस व्यक्ति को सौप दी जिसे मडुवे- झुंगरे और पहाड़ की हिमानी बयार का ज्ञान नहीं था | तब से इन 21 वर्षों में दस मुख्यमंत्री बन गए हैं | इन सबका राजपाट कैसा रहा तथा राज्य को क्या मिला, इस पर एक बड़ी बिरखांत की जरूरत नहीं है केवल एक छंद से ही पता चल जाएगा -

“बरस इक्कीस में बनि गईं, 

राज्य में मुख्यमंत्री दस,

राज्यक भल नि हय भलेही 

हय राजनैतिक सर्कस।

हय राजनैतिक सर्कस 

सब एक है एक ठुल नामी,

स्वामी भगत नारायण खंडूड़ी, 

निशंक बहुगुणा त्री रावत धामी।

कूंरौ ‘पूरन’ विकास देखूंहूँ, 

दूर दराज गो तरस,

पुर नि कर सब्जबाग दिखाईं, 

बिति गईं इक्कीस बरस ।”

     आजकल उत्तराखंड के सभी नेता केदार दर्शन में लगे हैं। सभी सीएम बनने के सपने पाले हुए हैं।  सी एम की पोस्ट एक है | फिर भी सभी केदार बाबा की उपासना में लगे हैं कि कुर्सी उनकी झोली में आ जाये | दो प्रमुख राजनैतिक दल एक दूसरे पर इतना कीचड़ फाल रहे हैं जिसके लिए अतिशयोक्ति अलंकार फीका पड़ रहा है | किसी को सब्र नहीं है । दोनों ओर से अपने अपने हाई कमान को खुश करने के लिए उथल-पुथल मची हुई है | अब दिल्ली पर राज करने वाली आप पार्टी भी वहां तुतुरी बजाने लगी है । देखते हैं इनका रणसिंह कितनी फूक मारता है ? आने वाले मार्च में शायद चुनाव होंगे वहां। तीनों दल जनता को लुभाने में कूद पड़े हैं। यह तो वक्त ही बताएगा कि जनता को लुभाने में कौन अब्बल रहा?  

     अब गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों की दुलैचों पर लमपसार होने का समय नजदीक आ रहा है क्योंकि चुनाव के दौरान सभी लड़ने वाले या लड़ने का नाटक करने वाले चुपचाप इन्हीं की शरण में जाकर जनता के सामने अंधविश्वास विरोधी भाषण देते हैं | ये लोग सभी शरण में आने वाले कैंडिडेट्स को जीतने का वरदान देंगे परन्तु जीतेंगे तो 70 ही।  पलायन थम नहीं रहा है । पलायन आयोग उवाच - '10 वर्ष में 5 लाख पलायन कर गए ।' हम सब रोजगार के लिए खानाबदोश बने और खानाबदोश ही रह गए । राज्य बनने पर किसका भला हुआ ? भ्रष्टाचार के बारे क्या कहना । पुल उद्घाटन से पहले ही हिल रहे हैं या गिर रहे हैं  और सड़क पर बिन कोलतार के बजीरी बिछाई जा रही है । इसका वीडियो बच्चे बना रहे हैं और लोग देख रहे हैं । 42 शहीदों की आत्मा क्या इन सबको नहीं देख रही होगी ? कोरोना ने पूरे देश को दुखी किया और 4.6 लाख लोग चल बसे। उत्तराखंड में भी 7401 लोगों का कोरोना से असामयिक निधन हो गया। इन सभी पीड़ित परिवारों के साथ सहानुभूति प्रकट करते हैं और मृतकों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं । जैसा कि विगत 20 वर्षों से हम प्रतिवर्ष 9 नवम्बर को एक दूसरे को राज्य गठन की शुभकामना देते आ रहे हैं, इस साल भी राज्य गठन की सभी उत्तराखण्डियों को इस आशा से शुभकामना देते हैं कि एक दिन भ्रष्टाचार रहित, शराब रहित और अंधविश्वास रहित हमारे सपनों का उत्तराखंड जरूर बनेगा । जय भारत, जय उत्तराखंड ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल

09.11.2021

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