खरी खरी - 961 : कायरता त्याग
राह में घायल कोई
मैं उठाता हूं नहीं,
मुजरिम मुझे ही समझ कर
वे जेल न कर दें कहीं ?
खोह असली मुजरिम की
उन्हें दीखती है नहीं,
पकड़ लेते मेमनों को
भेड़िये मिलते नहीं ।
मूंद लेता आंख अपनी
आबरू कोई लुट रही,
कान बहरे हो गए हैं
सिसकियां नहीं सुन रही ।
त्याग डर को, संत की
उस बात को तू याद कर,
मृत्यु से सौ बार पहले
कायर जन जाता है मर ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
16.11.2021
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