खरी खरी 953 : मसमसै सब रईं
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे के नि कूं रय,
आपणि आपणि है रै
क्वे कैकि नि सुणै रय ।
मैंस रात भरि
पटाखा छोड़ै रईं,
हौरन - लौस्पीकर
जोरैल बजूं रईं,
जागरण वाव
खूब कमू रईं,
मैंसूं कि रातै कि
नीन उडूँ रईं,
कानून कैं क्वे
लै नि पुछै रय,
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे
के नि कूं रय ।
आब नानतिन लै
आपण मना क हैगीं,
जता जस मन ऊँछ
उता उस करैं फैगीं,
मै बाप कैं हर बखत
बाघ जस देखैं फैगीं,
समझूण में कै दिनी
तुमार बात पुराण हैगीं,
बाव कैं दे भुलिगो
बुड़ आब रै नि गय ।
मसमसै....
मसाण - जागर मैं
सब डुबि रईं,
गणतू - पुछ्यारूंक
पिछलगू बनि गईं,
गांठ- पताव ताबीजोंक
माव जपैं रईं,
शराब,बकार,कुकुड़ खां रीं
परया जेब काटैं रईं,
अंधविश्वास में डुबि रीं
क्वे कैकं नि रोकैं रय,
मसमसै सब रईं
जोरैल क्वे के नि कूं रय ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
03.11.2021
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