Saturday 13 November 2021

Diwan Singh Nayal : दीवान सिंह नयाल

स्मृति - 665 : सामाजिकता के पर्याय थे दीवान सिंह नयाल

    क्रूर कोरोना ने विगत वर्ष समाज से कई  समाज-समर्पित मनीषियों को हमसे छीन लिया। उनमें से एक थे सामाजिकता के पर्याय दिवंगत दीवान सिंह नयाल जी।  कल 13 नवम्बर 2021 को नई दिल्ली के प्यारेलाल भवन में उनकी स्मृति में एक श्रद्धांजलि आयोजन के साथ एक पुस्तक का लोकार्पण भी किया गया। इस आयोजन में नयाल जी के सेवाभाव से ओतप्रोत कई लोग उपस्थित हुए। कार्यक्रम नयाल जी के परिवार की तरफ से आयोजित किया गया जिसमें मुख्य थे उनकी बेटी बीना नयाल और दामाद अमित चौहान जी । दिवंगत नयाल जी जैसे समाज सेवी हमेशा लोगों के दिलों में जीवित रहते हैं। उनके बारे में कुछ शब्द प्रस्तुत हैं।

     उत्तराखंड मूल के ही नहीं अपितु दिल्ली में सर्व समाज के लोग दिवंगत दीवान सिंह नयाल जी से परिचित थे। इसका मुख्य कारण था वे सामाजिकता से ओतप्रोत थे। समाज के किसी भी वर्ग के सुख - दुख में वे भागीदार रहते थे। विनम्रता के साथ स्पष्टवादिता उनका मुख्य गुण था। दीवान सिंह नयाल कांग्रेस पार्टी से भी जुड़े रहे और चुनाव भी लड़े परन्तु बहुत कम अंतर से चुनाव में पराजित रहे। विधायक बनकर ही समाज सेवा होती है इस बात को उन्होंने अतार्किक कर दिया। वे समाज सेवा करते रहे और जनता के मुद्दों को सत्ता तक पहुंचाते रहे।

       दिल्ली में उत्तराखंड निवासियों के लिए कुमाउनी -गढ़वाली -जौनसारी भाषा अकादमी निर्माण के लिए उन्होंने बहुत तल्लीनता से प्रयत्न किया। परिणाम स्वरुप जब दिल्ली में  'आम आदमी पार्टी ' की सरकार अस्तित्व में आई तो नवम्बर 2016 में अकादमी की घोषणा हो गई। भाषा अकादमी बनने से सभी उत्तराखण्डियों में खुशी की लहर का संचार हुआ। यह बात अलग है कि मार्च 2020 से देश और दिल्ली में कोरोना संक्रामक रोग फैल गया और सभी सांस्कृतिक गतिविधियां थम गई।  12 अगस्त 1956 को अल्मोड़ा जिले के ग्राम दाड़ीमखोला में जन्मे नयाल जी ने समाज सेवा के लिए दिल्ली को अपनी कर्मभूमि बनाया। समाज सेवा में लगे हुए दीवान सिंह नयाल जी को 13 नवम्बर 2020 को कोरोना महामारी ने अपना ग्रास बनाया। इस तरह 64 वर्ष की उम्र में वे दुनिया से चल बसे। कोरोना के दौर में दिल्ली में पच्चीस हजार से अधिक लोगों ने इस रोग से अपनी जान गंवाई और इन्हीं में एक दीवान सिंह नयाल भी थे।

      मैं दिवंगत दीवान सिंह नयाल जी से कई बार मिला और उन्हें स्वरचित किताबें भी भेंट की । वे सभी सामाजिक आयोजनों में मौजूद रहते थे और समस्याओं को सुलझाने में आगे रहते थे। उन्होंने दिल्ली में कुमाउनी - गढ़वाली में कवि सम्मेलन भी आयोजित किए जिनमें मैंने भी भागीदारी दी। दिवंगत दीवान सिंह नयाल जी भले ही आज हमारे बीच से चले गए परन्तु उनकी स्मृति और सामाजिकता आज भी लोगों के दिलों में मौजूद है । दीवान सिंह नयाल जैसे लोग मरते नहीं हैं अपितु वे अमर रहते हैं। समाज के इस जुझारू और समर्पित सिपाही को विनम्र श्रद्धांजलि।

पूरन चन्द्र कांडपाल
14.11.2021

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