Wednesday 28 April 2021

Rone se kuchh naheen milta : रोने से कुछ नहीं मिलता

खरी खरी - 839 : रोने से कुछ नहीं मिलता

( यह एक कौकटेल कविता है, कुछ पुरानी, कुछ नई, कुछ वर्तमान की आपके दिल में उठने वाली उमड़ - घुमड़ कुछ इसी तरह चल रही है इस दौर में । जीत के लिए सबसे बड़ी दवा है हिम्मत की सुई । घर बैठकर अपने वीरों को सलाम करते हुए चलो कविता की ओर रुख करते हैं । आज भारत बंद का दूसरा दिन है । हिम्मत के साथ घर में रहो, भागेगा कोरोना । जयहिंद । )

रोने से कभी
कुछ नहीं मिलता,
रह नहीं  गए अब
आंसू  पोछने वाले ।
.
दूर क्यों जाते हो
खोजने -ढूढने उन्हें,
तुम्हारे सामने ही हैं
पीठ पीछे बोलने वाले।

भरोसा मत करो
दिल अजीज कह कर,
शरीफ से लगते हैं
छूरा घोपने वाले।

संभाल अपने को
मतलब परस्तों से,
देर नहीं लगायेंगे
भेद खोलने वाले।

साथ देने की कसम पर
यकीन मत कर इनकी,
बहाना ढूढ़ लेते हैं
साथ छोड़ने वाले।

धर्म और मजहब सब
एक ही सीख देते हैं,
मतलब जुदा निकाल लेते हैं
समाज तोड़ने वाले।

अपने घर की बात
घर में ही रहने दो,
लगाकर कान बैठे हैं
घर को फोड़ने वाले।

दो बोल प्रेम के
बोल संभल के ,
नुक्ता ढूढ़ ही लेंगे
तुझे टोकने वाले।

आजकल घर से बाहर तू
भूल से भी मत निकल,
घुस सकते हैं तुझ में
वायरस कोरोना वाले ।

एक नज़र उनकी
तरफ भी देख जी भर,
बड़ी हिम्मत से जूझ रहे हैं
क्रूर कोरोना से लड़ने वाले।

करते हैं दिल से सलूट
इन साहसी कर्मवीरों को,
अथाह हिम्मत वाले हैं
ये कोरोना को भगाने वाले ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
29.04.2021

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