Friday 23 April 2021

Laadale Duryodhanon ke beech : लाडले दुर्योध नों के बीच

बिरखांत-366 : लाडले दुर्योधनों के बीच

       महाभारत महाकाव्य के रचना में महर्षि व्यास जी ने कुछ ऐसे चरित्रों का वर्णन किया है जो आज भी हमारी इर्द- गिर्द घूमते हैं | ऐसा ही एक चरित्र है ‘दुर्योधन’ | कुरुवंश के राजकुमारों को जब आचार्य द्रोण शिक्षा देते थे तो इस पात्र को उनकी अवहेलना करते हुए बचपन में ही देखा गया | साथ ही इस पात्र ने न कभी बड़ों का सम्मान किया और न शिष्टाचार की परवाह की | महाभारत महाकाव्य का पौराणिक या राजवंशी कथानक जो भी हो इसमें पारिवारिक एवं सामाजिक मान-मर्यादाओं का विशिष्ट उल्लेख है | दुर्योधन ने पूरे महाकाव्य में अशिष्टता के पायदान पर चलते हुए बड़बोलेपन से अन्याय को गले लगाया | उसने कुल की मान-मर्यादाओं की खिल्लियाँ उड़ाते हुए नारी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने का जो दुस्साहस किया, इससे बड़ा घृणित और पिशाचिक कुकृत्य कोई हो ही नहीं सकता | यदि अदृश्य योगेश्वर श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को वसन विहीन होने से नहीं बचा लिया होता तो भरी सभा में पांच पांडवों और अन्य महारथियों के साथ बैठे भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और महात्मा विदुर कौन सा दृश्य देखते ?”

     वहाँ विद्यमान पारिवारिक बड़ों में धृतराष्ट्र भी थे परन्तु उनके पास तो अंधा होने का प्रमाण था | दुर्योधन के आदेश पर जब दुशासन द्रोपदी को भरी सभा में बाल पकड़ कर घसीट लाया और निर्वस्त्र करने लगा तो उपरोक्त चारों महारथियों ने स्वयं को विवश पाया और गर्दन झुका ली | यहाँ कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं कि ये महारथी उस सभा से उठकर चले क्यों नहीं गए या उन्होंने दुर्योधन को रोका क्यों नहीं ? क्या ये चारों मिलकर भी दुर्योधन पर प्रहार नहीं कर सकते थे ? अकेले भीष्म ही काफी थे | आखिर ऐसी कौन सी विवशता थी जो इनके हाथ बंधे रह गए ? मैं काव्य के अन्तरंग पहलू पर नहीं जाता | कथानक से प्रतीत होता है कि दुर्योधन इन सबके नियंत्रण से बाहर हो गया था | वह जानता था कि भीष्म हस्तिनापुर से बंधे हैं, विदुर राजशाही के मंत्री हैं तथा दोनों आचार्य राजघराने में दखल न देना ही उचित समझते हैं | इस तरह दुर्योधन एक जिद्दी, निरंकुश, हठधर्मी, महत्वाकांक्षी एवं अन्याय का पक्ष लेने वाला कुपात्र बन गया |

     क्या दुर्योधन को बाल्यकाल से ही पथभ्रष्ट होने से रोका नहीं जा सकता था ? धृतराष्ट्र अपने बेटे की गलती को अनसुना कर देते थे और मां गांधारी ने तो आँखों पर पट्टी बाँध ली थी | यदि उसे रोका जाता तो महाभारत काव्य का अंत कुरुवंश के नाश के साथ नहीं होता | आज हमारे घरों में भी दुर्योधनों की पौध उत्पन्न होने लगी है और हम सब लगभग धृतराष्ट्र- गांधारी बन गए हैं | हम अपने बच्चों के दोषों को अनदेखा करते हैं | बच्चों द्वारा अध्यापकों अथवा किसी अन्य की बुराई हम चुपचाप सुन लेते हैं | बच्चों की असभ्य भाषा और अमर्यादित व्यवहार पर भी हम चुप रहते हैं | बड़ों का आदर न करने, उनका मजाक उड़ाने तथा छोटों का उपहास करने पर हम आखें मूँद लेते हैं जो अनुचित है | घर के काम में हाथ बंटाने, सामाजिक और मितव्ययी बनने तथा अच्छी संगत करने की निरंतर सलाह बच्चों के लिए जरूरी है |

     बच्चों में देशप्रेम की उदासीनता, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस से  बेपरवाही, भोजन और पहनावे में मनमानी, भाई या बहन के प्रति खींझ आदि हम सब देख रहे हैं जो दुखदायी है | बच्चों का अड़ियल, असहिष्णु, असंयमी, संवेदना हीन होना और प्रत्येक बात में कुतर्क करना उनमें सार्थक व्यक्तित्व नहीं पनपने देगा | ‘गलती हो गयी’, ‘दोबारा ऐसा नहीं होगा’, ‘क्षमा करें’, ’मैं करता हूँ आप रहने दो’, जैसे शब्द बच्चों के मुंह से लुप्त हो गए हैं | वाणी में मिठास की जगह कर्कशता छा गयी है | कुछ बच्चे गुटका, धूम्रपान, पान- मशाला और शराब भी पीते देखे गए हैं | यहाँ तक कि स्कूल में भी कुछ बच्चों के बैग में शराब मिली है | मोबाइल में भी वे अश्लील देख रहे हैं |

     कबूतर की तरह आँख बंद कर लेने से हमारे बच्चे अंधकार में भटक जायेंगे | औलाद के मुंह से निकले कटु शब्द पीड़ा पहुँचाते हैं | हमें अपने  दिशाहीन बच्चों को पुचकार कर समझाने- सहलाने की राह अपनानी होगी | यदि हम डर गए या हार गए तो अंततः नुकसान हमारा ही होगा | हमें समय रहते अपने बच्चों पर चौकस निगाह रखनी ही होगी और अपना व्यवहार विनम्र रखना होगा ताकि एक दिन वे समझ सकें कि उनके माता- पिता उनके भविष्य के लिए ही कबाब की तरह सिंकते –सिंकते सिकुड़ जाते हैं |

     (  आज 23 अप्रैल 2021, दिल्ली कोरोना कर्फ्यू का आज चौथा दिन है । विश्व में 14.38 करोड़ लोग कोरोना संक्रमित हो चुके हैं और 30.6 लाख इसके ग्रास बन चुके हैं । हमारे देश में भी 1.56 करोड़ से अधिक संक्रमित हो चुके हैं और 1.82 लाख से अधिक लोग ग्रास बन चुके हैं । दिल्ली में पिछले 24 घंटे में 24638 नए केस हुए हैं और इसी दौरान 249 रोगी कोरोना काल कवलित जो चुके हैं।  कुछ दुर्योधन घर से बाहर बेवजह किसी न किसी बहाने निकल रहे हैं । उन्हें  किसी तरह रोकिए । हिम्मत से मुंह खोलिए । आज हम हस्तिनापुर से नहीं बल्कि भारत देश के राष्ट्रप्रेम से बंधे हैं और अपने लाडले दुर्योधनों को कोरोना का मुकाबला करने वाले कर्मवीरों की मेहनत पर पानी नहीं फेरने दे सकते । हारेगा कोरोना, जीतेगा भारत । )

पूरन चन्द्र काण्डपाल,
23.04.2021

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