Saturday 3 April 2021

Bhagwaan ki kaun sune ? भगवान की कौन सुने?

खरी खरी - 822 : भगवान की कौन सुने ?

      भगवान अपने प्रशंसकों से शिकायत कर रहे हैं कि "मेरे कई रूपों के कई प्रकार के चित्र हर त्यौहार पर विशेषत: नवरात्री, जन्माष्टमी और रामलीला के दिनों में समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में भी छपते रहे हैं |  अख़बारों में तो मेरे चित्र छपने ही नहीं चाहिए । रद्दी में पहुंचते ही इन अखबारों में जूते- चप्पल, मांस- मदिरा सहित सब कुछ लपेटा जाता है | मेरी इस दुर्गति पर भी सोचिए | मैं और किससे कहूं ? जब आप मुझ से अपना दर्द कहते हैं तो मैं भी तो आप ही से अपना दर्द कहूंगा | मेरी इस दुर्गति का विरोध क्यों नहीं होता, यह मैं आज तक नहीं समझ पाया ? मुझे उम्मीद है अब आप मेरी इस वेदना को समझेंगे और इस प्रचलन/परम्परा को बंद करेंगे। साथ ही मेरी खंडित/पुरानी मूर्तियों को भी इधर - उधर किसी पेड़ के नीचे फेंकने के बजाय उनका भू - विसर्जन करेंगे अर्थात जल स्रोतों में डालने के बजाय किसी स्वच्छ जगह पर माटी में दबा देंगे। पानी में डालकर भी वह मिट्टी में ही मिलती है ।  ठीक तरह से मेरा भू-विसर्जन सबसे उत्तम विकल्प है जिसे कुछ लोग अपनाने भी लगे हैं। मेरे चित्र अखबारों में छपने के बाद उस अखबार के रद्दी में चले जाने पर और मेरी इधर - उधर फेंकी हुई मूर्ति को देखकर क्या मेरे उपासकों की श्रृद्धा पर चोट नहीं पहुंचती ?  सदा ही आपके दिल में डेरा डाल कर रहने वाला आपका प्यारा ‘भगवान’ | 

पूरन चन्द्र कांडपाल

04.04.2021

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