Friday 19 March 2021

Nirbhaya ka smaran : निर्भया का स्मरण

खरी खरी - 812 : निर्भया का स्मरण

       तीन बार फांसी टलने के बाद अंततः न्याय की जीत हुई । 7 साल 3 महीने 3 दिन के इंतजार के बाद विगत वर्ष 20 मार्च 2020 की सुबह 0530 बजे निर्भया के चारों दोषियों को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई । उस दिन देश में निर्भया दिवस मनाया गया । फांसी के समय निर्भया के घर के बाहर काफी लोग पहुंचे थे । दिल्ली के तिहाड़ जेल के बाहर भी कई लोग इस न्याय को अंजाम पर जाते देखने - सुनने के लिए खड़े थे । उस दिन निर्भया की आत्मा को शांति मिली होगी । निर्भया के माता - पिता और जनता का संघर्ष इस सजा को अंजाम तक पहुंचाने में काम आया । निर्भया के माता -पिता ने अदालतों, वकीलों, सरकार, मीडिया, पत्रकारों और जनता का इस न्याय संघर्ष में साथ देने के लिए दिल से अश्रुपूर्ण आभार जताया ।

     दुष्कर्म (रेप) ने हमारे देश में अब एक समस्या का रूप ले लिया है । प्रतिदिन कई  बच्चियां और महिलाएं इस जघन्य अपराध का शिकार हो रही हैं जबकि 10 में से केवल 1 केस ही कानून तक पहुंचता है क्योंकि सामाजिक डर या न्याय में देरी के कारण लोग रिपोर्ट नहीं करते जबकि प्रत्येक पीड़ित को रिपोर्ट करना चाहिए । 95 % आरोपी तो पीड़िता के रिश्तेदार, पड़ोसी, सहपाठी, सहकर्मी या पहचान वाले होते हैं । अब किस पर भरोसा करें ? आज हम उस दौर से गुजर रहे हैं जब नारी वर्ग को हर किसी भी पुरुष को संदेह की दृष्टि से देखना चाहिए कि वह उसके लिए कभी भी घातक हो सकता है । 

     अधिक दुःखद तो तब होता है जब ये नरपिशाच दुधमुंही बच्चियों को इस कुकृत्य का शिकार बनाते हैं । कुछ दिन पहले इंदौर में एक 26 वर्षीय नरपिशाच ने एक 4 माह की बच्ची के साथ दुष्कर्म करके उसकी हत्या कर दी । यह नरपिशाच उस बच्ची के परिजनों को जानता था ।  निर्भया के दुष्कर्मी तो शैतान थे जिन्होंने सामूहिक दुष्कर्म के बाद उस लड़की के शरीर को अपने दांतों से काटा, उसके अंग - प्रत्यंग को बड़े वीभत्स तरीके से क्षत - विक्षत किया । इस घृणित कुकृत्य की सजा मौत ही थी । 

      एक सवाल यह भी है कि यह फांसी 3 बार इसलिए टली क्योंकि हमारे कानून में कहीं न कहीं लूप होल था जिसका इन दरिंदों के वकीलों ने 19 मार्च 2020 की रात तक खूब फायदा उठाया और केस को इतना लंबा खीचा । यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय न्यायालय जाने कई धमकी तक दी गई । ये लूप होल शीघ्र बंद होने चाहिए । 

     समाज को अपने बच्चों पर निगाह रखनी चाहिए क्योंकि ये दरिंदे 16 दिसंबर 2012 की रात अचानक नरपिशाच नहीं बने । ये नरपिशाच अपने पीछे रोते -बिलखते पांच परिवार छोड़ गए जो जीवनभर इनके कुकर्म की सजा भोगेंगे और नरपिशाचों के संबंधी कहलाएंगे । हम सब जो निर्भया को न्याय दिलाने में निर्भया के परिवार के साथ थे, इन दरिंदो को फांसी पर लटकाए जाने के बाद एक राहत महसूस कर रहे हैं । हमारा संघर्ष अभी समाप्त नहीं हुआ क्योंकि कई दुष्कर्मी आज भी सजा पाने की कतार में जेल के अंदर हैं या बाहर खुलेआम घूम रहे हैं । कइयों को तो संरक्षण भी मिलता है।  इन्हें भी हम सबने मिलकर सजा के अंजाम तक पहुंचाना है ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

20.03.2021

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