खरी खरी - 800 : मनखियेकि जिंदगी
मंखियैक जिंदगी
लै कसि छ,
हावक बुलबुल
माटकि डेल जसि छ ।
जसिके बुलबुल फटि जां
मटक डेल गइ जां,
उसके सांस उड़ते ही
मनखि लै ढइ जां ।
मरते ही कौनी
उना मुनइ करि बेर धरो,
जल्दि त्यथाण लिजौ
उठौ देर नि करो ।
त्यथाण में लोग कौनी
मुर्द कैं खचोरो,
जल्दि जगौल
क्वैल झाड़ो लकाड़ समेरो ।
चार घंट बाद
मुर्द राख बनि जां,
कुछ देर पैली लाखक छी
जइ बेर खाक बनि जां ।
मुर्दाक क्वैल बगै बेर
लोग घर ऐ जानीं,
घर आते ही जिंदगी की
भागदौड़ में लै जानीं ।
मनखियेकि राख देखि
मनखी मनखी नि बनन,
एकदिन सबूंल मरण छ
य बात याद नि धरन ।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
02.03.2021
No comments:
Post a Comment