Saturday 6 March 2021

Aisee meree soch kahaan : ऐसी मेरी सोच कहां

खरी खरी - 804 : ऐसी मेरी सोच कहाँ ?

मंदिर- मस्जिद राम- द्वंद 

मुझे न जिंदा छोड़ेंगे,

राम-रहीम को एक मैं जानू

ऐसी मेरी सोच कहां ?

या दंगों में मेरा जाऊं

या आतंक का बनू ग्रास

जान बचाऊं औरों की मैं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

या भगदड़ में दब के मरूंगा

या रोग -प्रदूषण करे शिकार

मजहब -जाति का दल दल पाटूं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई

जैन पारसी बौद्ध बहाईं,

रक्त सभी का एक मैं जानूं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

जप तप पूजा पाठ का राग

जीवन भर अलापता  गया,

कर्म को ही पूजा में जानू

ऐसी मेरी सोच कहां ?

रुढ़िवाद और अंधविश्वास के

सांकल में हूं जकड़ा गया,

काटूं सांकल मुक्ति पाऊं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

शहीद हुए जो मातृभूमि पर

उनको तो में भूल गया,

स्मृति में उनके शीश झुकाऊं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

पूरा जीवन अन्न उगाता

माटी को भगवान मानता

किसान को अन्नदाता समझूं

ऐसी मेरी सोच कहां ?

खाली हाथ यहां आया अकेले

ऐसे ही मैं जाऊंगा,

जीवन चार दिनों का जानू

ऐसी मेरी सोच कहां ?

पूरन चन्द्र काण्डपाल

07.03.2021

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