Wednesday 23 December 2020

Jagar naheen marj ki dawa 1 :जागर नहीं मर्ज की दवा - 1

बिरखांत -349 :  जागर नहीं है मर्ज की दवा (i)

     देवताओं की भूमि कहा जाने वाला प्रदेश उत्तराखंड प्राकृतिक सौन्दर्य, स्वच्छ वातावरण तथा अनगिनत देवालयों के लिए प्रसिद्ध है | यहां के निवासी परिश्रम, कर्तव्यनिष्ठा, ईमानदारी, त्याग, देशप्रेम तथा जुझारूपन के लिए भी जाने जाते हैं | साक्षरता में भी अब यह प्रदेश अग्रणीय हो रहा है | रोजगार के अभाव में पलायन थमने का नाम नहीं ले रहा | इस पहाड़ी राज्य में पहाड़ से भी ऊँची रुढ़िवादी परम्पराएं यहां के निवासियों को आज भी घेरे हुए है |

     ऐसी ही एक परम्परा है ‘जागर’ जिसे यहां ‘जतार’ या ‘जागरी’ के नाम से भी जाना जाता है | पूरे राज्य में यह परम्परा भिन्न-भिन्न नाम से समाज को अपने मकड़जाल में फंसाए हुए है | सभी जाति- वर्ग का गरीब- अमीर तबका इस रूढ़िवाद में जकड़ा हुआ है जिसे इस जकड़ का तनिक भी आभास नहीं है |

     इस तथाकथित समस्या समाधान के लिए आयोजित की जाने वाली ‘जागर’ में मुख्य तौर से तीन व्यक्तियों का त्रिकोण होता है | पहला है ‘डंगरिया’ जिसमें दास द्वारा ढोल या हुड़के की ताल- थाप पर देवता अवतार कराया जाता है जिसे अब ‘देव नर्तक’ कहा जाने लगा है | दूसरा है ‘दास’ जिसे ‘जगरिया’ अथवा ‘गुरु’ भी कहा जाता है | यह व्यक्ति जोर- जोर से बिजेसार (ढोल) अथवा हुड़का (डमरू के आकार का स्थानीय वाद्य ) बजाकर वातावरण को कम्पायमान कर देता है |  इसी कम्पन में डंगरिये में देवता अवतरित हो जाता है | देवता अवतार होते ही डंगरिया भिन्न- भिन्न भाव- भंगिमाओं में बैठकर अथवा खड़े होकर नाचने लगता है | इस दौरान ‘दास’ कोई लोकगाथा भी सुनाता है | लोक चलायमान यह गाथा जगरियों को पीढ़ी डर पीढ़ी कंठस्त होती है | वीर, विभत्स, रौद्र तथा भय रस मिश्रित इस गाथा का जगरियों को पूर्ण ज्ञान नहीं होता क्योंकि सुनी- सुनाई यह कहानी उन्हें अपने पुरखों से विरासत में मिली होती है | यदि इस गाथा में कोई श्रोता शंका उठाये तो जगरिया उसका समाधान नहीं कर सकता | उसका उत्तर होता है “ बुजर्गों ने इतना ही बताया |”

     ‘जागर’ आयोजन का तीसरा कोण है ‘सौंकार’ अर्थात जो व्यक्ति अपने घर  में जागर आयोजन करवाता है | ‘सौंकार’ शब्द ‘साहूकार’ का अपभ्रंश है जिसका अर्थ है धनवान या ऋण देनेवाला | जागर आयोजन करने वाला व्यक्ति अक्सर गरीब होता है परन्तु जागर में उसे ‘सौंकार’ फुसलाने के लिए कहा जाता है ताकि वह इस अवसर पर खुलकर धन खर्च करे |

     ‘जागर’ आयोजन का कारण है आयोजक किसी तथाकथित समस्या से ग्रस्त है जिसका समाधान जागर में करवाना है | बीमार पड़ने, स्वास्थ्य कमजोर रहने, कुछ खो जाने, परिजन का आकस्मिक निधन हो जाने, पशुधन सहित चल- अचल सम्पति का नुकसान होने, पुत्र-पुत्री के विवाह में विलम्ब होने, संतान उत्पति में देरी अथवा संतान नहीं होने, संतान का स्वच्छंद होने, संतान उत्पति पर जच्चा को बच्चे के लिए दूध उत्पन्न नहीं होने, विकलांग शिशु के जन्म लेने, तथाकथित ऊपर की हवा (मसाण –भूत, छल- झपट ) लगने, किसी टोटके का भ्रम होने, दुधारू पशु द्वारा दूध कम देने, जुताई के बैलों की चाल में मंदी आने, तथाकथित नजर (आँख) लगने, परीक्षा में असफल होने, नौकरी न लगने, परिजन के शराबी- नशेड़ी- जुआरी बनने, सास- बहू में तू- तड़ाक होने अथवा मनमुटाव होने, परिवार- पड़ोस में कलह होने, पलायन कर गए परिजन का पत्र अथवा मनीआर्डर न आने अथवा आशानुसार उसके घर न आने जैसी आए दिन की समस्याएं जो वास्तव में समस्या नहीं बल्कि जीवन की सीढ़ियां हैं जिनमें हमें चलना ही होता है, जागर आयोजन का प्रमुख कारण होती हैं | वर्षा नहीं होने, आकाल पड़ने अथवा संक्रामक रोग फ़ैलने पर सामूहिक जागर का आयोजन किया जाता है जिसका अभिप्राय है रुष्ट हुए देवताओं को मनाना परन्तु ऐसा कम ही देखने को मिला है जब जागर के बाद इस तरह के संकट का निवारण हुआ हो |

     व्यक्तिगत जागर पर विहंगम दृष्टिपात करने पर स्पष्ट होता है कि उपरोक्त में से किसी भी समस्या के पनपते ही समस्या-ग्रस्त (दुखिया) व्यक्ति डंगरिये तथा जगरिये से सलाह- मशवरा करके जागर आयोजन की तिथि निश्चित करता है | पूरा गांव जागर वाले घर में एकत्रित हो जाता है | समस्या समाधान की उत्सुकता सबके मन में बनी रहती है | दास- डंगरिये को भोजन कराया जाता है | (अब शराब भी पिलाई जाती है ) | धूप- दीप जलाकर तथा गोमूत्र छिड़क कर स्थान को पवित्र किया जाता है | डंगरिये को आसन लगाकर बैठाया जाता है | ठीक उसके सामने जगरिया और उसका साथी तासा (रौटी) वाला बैठता है | डंगरिये को भंगड़ी (सुल्पे में तम्बाकू के ऊपर छोटे छोटे जलते हुए कोयले रखे जाते हैं ) दी जाती है जिसे वह धीरे- धीरे कश लगाकर पीते रहता है | पंच- कचहरी (वहाँ मौजूद जन समूह ) में धूम्रपान का सेवन खुलकर होता हे | नहीं पीने वाला भी मुफ्त की बीड़ी- सिगरेट पीने लगता है | इसी बीच जगरिया अद्वायी (गाथा) सुनाने लगता है | शेष भाग अगली बिरखांत  350 में...

पूरन चन्द्र काण्डपाल

24.12.2020

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