Sunday 8 November 2020

Sapno ka uttrakhand : का उत्तराखंड

खरी खरी -  732 :  कहां गया हमारे सपनों का उत्तराखंड ?

     जब मैं प्राइमरी पाठशाला का विद्यार्थी था ( 1954-59 ), स्वतंत्रता दिवस के दिन स्कूल से प्रभात फेरी निकाली जाती थी जो स्थानीय गांवों से होते हुए पुनः स्कूल में आती थी | प्रभात फेरी में गीत थे “क्या सुहाना वक्त है कैसा मुवारक राज है, राजेन्द्र जी के सिर पर देखो विराज ताज है”, “विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊँचा रहे हमारा, इसकी शान न जाने पावे, चाहे जान भलेही जावे” आदि ।

  काल का पहिया घूमते हुए 42 शहीदों की धधकती चिताओं की रोशनी में 9 नवम्बर 2000 को देवेगौड़ा जी घोषित (15 अगस्त 1996) उत्तराखंड बन गया | आशा, आकांक्षा, अपेक्षा और उम्मीदों के उत्तराखंड का हमने ढोल- नगाड़े बजाकर और गीत- कविताओं के साथ जोरदार स्वागत किया |

     राज्य तो बन गया परन्तु शुरुआत कुछ अटपटी हुई | भूमिये के थान में गलत पत्थर थाप दिया | नए राज्य की बागडोर उस व्यक्ति को सौप दी जिसे मडुवे- झुंगरे और पहाड़ की हिमानी बयार का ज्ञान नहीं था | तब से इन 20 वर्षों में आठ मुख्यमंत्री बन गए हैं | इन सबका राजपाट कैसा रहा तथा राज्य को क्या मिला, इस पर एक बड़ी बिरखांत की जरूरत नहीं है केवल एक छंद से ही पता चल जाएगा -

“ बरस बीस में बनि गईं,
राज्य में मुख्यमंत्री आठ
राज्यक भल नि हय भलेही,
उनार हईं खूब ठाट।

उनार हईं खूब ठाट,
हमूल देखीं सबूं क हालत,
स्वामी भगत नारायण खंडूड़ी,
निशक बहुगुणा डबल रावत।

कूंरौ ‘पूरन’ विकास देखूंहूँ,
दूर दराज गो तरस,
पुर नि कर सब्जबाग दिखाईं,
बिति गईं बीस बरस ।”

     आजकल उत्तराखंड कर्म के नाम पर विधायक विहीन है | सभी सत्तर विधायकों में कुछ लुकी गए हैं और कुछ लुका दिए गए हैं | दिल्ली - देहरादून में बारी- बारी से आते जाते रहते हैं । सबसे बड़ा दुःख तो यह है कि हमारे सभी विधायक सी एम बनना चाहते हैं | सी एम की पोस्ट एक है | आजकल सभी केदार बाबा की उपासना में लगे हैं कि कुर्सी उनकी झोली में आ जाये | दो प्रमुख राजनैतिक दल एक दूसरे पर इतना कीचड़ फाल रहे हैं जिसके लिए अतिशयोक्ति अलंकार फीका पड़ रहा है | किसी को सब्र नहीं है । दोनों ओर से अपने अपने हाई कमान को खुश करने के लिए उथल-पुथल मची हुई है | सुना है दिल्ली वाली आप पार्टी भी वहां तुतुरी बजाने लगी है । देखते हैं इनका रणसिंह कितनी फूक मारता है ?

     अब गणतुओं, पुछारियों, डंगरियों, जगरियों की दुलैचों पर पव्वे- अद्धे चढ़ने का समय नजदीक आ रहा है क्योंकि चुनाव के दौरान सभी लड़ने वाले या लड़ने का नाटक करने वाले चुपचाप इन्हीं की शरण में जाकर जनता के सामने अंधविश्वास विरोधी भाषण देते हैं | कुछ वर्ष पूर्व होली से पहले उत्तराखंड में एक निर्दोष घोड़े के टांग खंडित कर दी गयी |  अमानुष दण्डित नहीं हुए ?

     पलायन थम नहीं रहा है । पलायन आयोग उवाच - '10 वर्ष में 5 लाख पलायन कर गए ।' हम सब रोजगार के लिए खानाबदोश बने और खानाबदोश ही रह गए । राज्य बनने पर किसका भला हुआ ? भ्रष्टाचार के बारे क्या कहना । पुल उद्घाटन से पहले ही हिल रहे हैं और सड़क पर बिन कोलतार के बजीरी बिछाई जा रही है । इसका वीडियो बच्चे बना रहे हैं और लोग देख रहे हैं । 42 शहीदों की आत्मा क्या इन सबको नहीं देख रही होगी ? राज्य गठन की शुभकामना हम सब उत्तराखण्डियों को, जैसा कि हर साल 9 नवम्बर को देते आ रहे हैं । जय भारत, जय उत्तराखंड ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
09.11.2020

No comments:

Post a Comment