खरी खरी - 743 : घरवाइकि भक्ति
कौसल्या केकई सुमित्रा
दसरथाक छी राणी तीन,
उं हमेशा बारि बारि कै
हराम करछी दसरथकि नीन ।
अच्याल यूं तीनोंक रोल
क्वे लै घरवाइ एकलै निभै सकीं,
कौसल्या सुमित्रा कम
केकई जरा ज्यादै
बनि बेर दिखै सकीं ।
जभणि क्वे मंथरा कि
नजर लै जालि घरवाइ पार,
समझो घर में चलक ऐगो
बिगड़ि गो सब घरबार ।
भ्यार भलेही सबूं हैं
खूब बागै चार गुगौ,
घर आते ही भिजाई
बिराउ जास बनि जौ ।
घरवाइक सामणि फन फन
नि करो, मुनव कनौ,
खांहूँ नि लै बनै सकना
भान तब लै चमकौ ।
साग-पात सौद पत्त ल्हीहूँ
उ दगै हमेशा बाजार जौ,
समान उ आफी ख़रीदलि
तुम चुपचाप झ्वल पकड़ि
वीक पिछाड़ि बै ठाड़ हैरौ ।
अगर चांछा हमेशा भलि भांत
चलो गृहस्थी कि गाड़ि,
तो टैम टैम पर ल्याते रौ
वीक मनकसि भलि भलि साड़ि।
पूरन चन्द्र काण्डपाल
25.11.2020
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