Wednesday 11 November 2020

Kayarta tyaag : कायरता त्याग

खरी खरी -  735 : कायरता त्याग

राह में घायल कोई
मैं उठाता हूं नहीं,
मुजरिम मुझे ही समझ कर
वे जेल न कर दें कहीं ?

खोह असली मुजरिम की
उन्हें दीखती है नहीं,
पकड़ लेते मेमनों को
भेड़िये मिलते नहीं ।

मूंद लेता आंख अपनी
आबरू कोई लुट रही,
कान बहरे हो गए हैं
सिसकियां नहीं सुन रही ।

त्याग डर को, संत की
उस बात को तू याद कर,
मृत्यु से सौ बार पहले
कायर जन जाता है मर ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
12.11.2020
(  मेरा कविता संग्रह 'स्मृति लहर' से )

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