खरी खरी - 473 : देश में बाड़ की विभीषिका
इस समय जब हम अपने 73वें स्वतंत्रता दिवस मनाने की तैयारी में लगे हैं, देश के कई भागों को भीषण बाड़ ने अपनी चपेट में लिया है । केरल, कर्नाटक और महाराष्ट्र सबसे अधिक प्रभावित हैं । यहां कई लोगों की डूबने से मृत्यु भी हो गई है। उत्तराखंड में भी बादल फटने से बहुत क्षति हुई है । वैज्ञानिकों के अनुसार जिस वर्षा को लगातार दो हफ्ते होना था वह अचानक एक या दो दिन में होने लगी है । देश में कहीं सूखा है तो कहीं अधिक वर्षा हो रही है । बाड़ से होने वाली इस त्रासदी के जिम्मेवार हम ही हैं और हमारा शासन तंत्र है ।
ग्लोबल वार्मिग के कारण पूरा वर्षा चक्र गड़बड़ा गया है और ग्लोबल वार्मिग का कारण भी हम और हमारा असंतुलित पर्यावरण को छेड़ना है । हमने 2013 की केदारनाथ विभीषिका से कुछ नहीं सीखा जिसमें 5800 लोग जल प्रलय से अपना जीवन खो चुके थे । वहां हमने नदी के घर में (बहाव क्षेत्र ) अपने डेरे बना लिए थे । अन्य राज्यों में भी यही हो रहा है । नदी के बहाव क्षेत्र में घर या बाजार बन गए हैं , कुएं और तालाब लुप्त करके वहां भी मनुष्य ने रहना शुरू कर दिया है । यह सब सरकार और शासन की नाक के नीचे होता है । स्थानीय निकाय इस अवैध निर्माण के साक्षी होते हैं । भ्रष्टाचार की चादर की ओट में यह अवैध कर्म वैध हो जाता है । यह पूरे देश की हालत है किसी राज्य विशेष की नहीं ।
बाड़ में मारे गए लोगों के परिजनों के प्रति हम एक कोरी सहानुभूति के सिवाय और कर भी क्या सकते हैं । वर्षा और बाड़ के थमने के बाद जिंदगी को पीड़ित लोग पुनः रास्ते में लाने का प्रयास करेंगे । मीडिया - अखबार भी चुप हो जाएंगे । अगले साल फिर यही होगा । क्या हमारी सरकारें या नीति नियंता इस प्रतिवर्ष की त्रासदी पर कुछ मंथन करेंगे ? क्या हम पर्यावरण की छेड़छाड़ में संयम बरतेंगे । क्या लोग ग्लोबल वार्मिंग पर गंभीरता से सोचेंगे ? इस बीच एक सलूट उनको जरूरी है जो वर्दी पहने भगवान के रूप में पीड़ितों का जीवन बचा रहे हैं । जयहिंद एनडीआरएफ, जयहिंद एसडीआरएफ, जयहिंद हिन्द की सेना । एक जयहिंद उन संवेदनशील मनखियों को भी जो बाड़ पीड़ितों की मदद में हाथ बंटा रहे हैं ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
14.08.2019
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