खरी खरी - 481 : अलग थकुली नि बजौ
देशा का मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ .
एकै उल्लू भौत छी
पुर बगिच उजाड़ू हूँ
सब डवां में उल्लू भै गयीं
बगिचौ भल्याम कसी हूँ.
गिच खोलो भ्यार औ
भितेर नि मसमसौ, देशा क ....
समाओ य देशें कें
हिमाल धात लगूंरौ
बचौ य बगीचे कें
जहर यमे बगैँ रौ
उंण नि द्यो य गाड़ कें
बाँध एक ठाड़ करौ, देशा क .....
उठो आ्ब नि सेतो
यूं उल्लू तुमुकें चै रईं
इनू कें दूर खदेड़ो
जो म्या्र डवां में भै रईं
यकलै यूं नि भाजवा
दग डै जौ दौड़ी बे जौ . देशा क .....
शहीदों कें याद करो
घूसखोरों देखि नि डरो
कामचोरों हूँ काम करौ
हक़ आपण मागि बे रौ
अंधविश्वास क गव घोटो
अघिल औ पिछाड़ी नि रौ.
देशा क मिलि गीत कौ
अलग थकुली नि बजौ.
पूरन चन्द्र कांडपाल
27.08.2019
(मुकस्यार कुमाउनी कविता संग्रह 2011 बै )
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