Tuesday 1 September 2020

Purskaar ke yathaarth supaatr : पुरस्कार के यथार्थ सुपात्र

खरी खरी - 688 : पुरस्कार के यथार्थ सुपात्र

      आज से 10 साल पहले वर्ष 2009 में ईमानदारी के पहरुओं, राष्ट्रहित के चिंतकों तथा सार्थक दृष्टिकोण के समर्थकों को समर्पित मेरी पुस्तक "यथार्थ का आईना " जिसमें मैंने राष्ट्र हित के 101 मुद्दों की लघु चर्चा उनके समाधान के साथ की थी। इस पुस्तक में लघु लेखों के रूप में मेरे द्वारा उठाए गए वे मुद्दे हैं जो अगस्त 1989 से 2004 की अवधि में विभिन्न समाचार पत्रों में छपे थे और प्रासंगिक होने के कारण इन्हें मैंने 2009 में पुस्तक का आकार दिया ।

      दो दशक बाद भी ये लेख प्रासंगिक हैं ।  इन मुद्दों में फरवरी 2003 में छपा एक मुद्दा है "विवादों के घेरे में पुरस्कार "। इस लेख का एक अनुच्छेद यहां उद्धृत है - "हमारे देश में विभिन्न क्षेत्रों में दिए जाने वाले पुरस्कार अक्सर विवाद के घेरों में फंस जाते हैं । चाहे ये केंद्र द्वारा दिए दिए जाते हों या राज्यों द्वारा । यह तो पुरस्कार देने वाले ही जानते होंगे कि पुरस्कार से नवाजने का मापदंड क्या है ?  कार्यानुभव, योग्यता, वरीयता, क्षेत्र में सहभागिता, कार्यकुशलता, सेवाएं, गुणवत्ता, ऐप्रोच, जुगाड़बाजी, चाटुकारिता आदि कुछ प्रचलित मापदंड देखे गए हैं ।"

     आज भी हमारे इर्द - गिर्द दिए जाने वाले सरकारी पुरस्कार विवादित होते है चाहे वे पद्म पुरस्कार हों, खेल पुरस्कार हों, विज्ञान पुरस्कार हों, साहित्य पुरस्कार हों या कोई अन्य पुरस्कार ही क्यों न हों । कई बार तो वास्तविक दावेदार को न्यायालय के द्वार भी खटखटाने पड़ते हैं जैसा कि कुछ वर्ष पहले एक अर्जुन पुरस्कार न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद दिया गया ।

     हम केवल इतना कहना चाहते हैं कि पुरस्कार सही व्यक्ति को मिले जिसमें लगना भी चाहिए कि पुरस्कार प्राप्तकर्ता वास्तव में पुरस्कार का हकदार है । यदि वास्तविक व्यक्ति को पुरस्कार मिलने के बजाय किसी अन्य को पुरस्कार दिया जाता है तो यह उस पुरस्कार का अपमान तो है ही, उसकी चयन समिति भी प्रश्नों के घेरे में रहती है । योग्यता को दरकिनार कर अयोग्य व्यक्ति को पुरस्कार दिया जाना सत्य और यथार्थ के साथ अन्याय है । इस तरह पुरस्कृत व्यक्ति "यथार्थ के आइने " के सामने खड़ा नहीं रह सकता और उसे उसकी अपात्रता का कंटक सदैव सालते रहता है ।  पुरस्कार यदि यथार्थ व्यक्ति को नहीं मिलेगा तो यह पुरस्कार का उसी तरह अनादर है जैसे ' आदर के चने भले बेआदर की दाल बुरी ।' अतः किसी भी पुरस्कार का अनादर न हो और पुरस्कार सुपात्र को ही दिया जाय ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
02.09.2020

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