Friday 18 September 2020

Sijeriyan : सिजेरियन

खरी खरी - 517 :  नॉर्मल डिलीवरी या सिजेरियन ?

      किसी भी महिला के लिए मां बनना एक अद्भुत ऐहसास है जिसे प्रत्येक महिला पाना चाहती है । आज नव-मातृत्त्व में कदम रखने वाली अधिकांश युवतियां शिशु का जन्म नार्मल डिलीवरी (प्राकृतिक प्रसव) के बजाय सिजेरियन से करवा रहीं हैं । सिजेरियन अर्थात महिला के गर्भ से शिशु को सर्जरी (ओप्रेसन) से बाहर निकलना । आजकल यह सुविधानुसार भी होने लगा है ।

      चिकित्सकों के अनुसार नार्मल डिलीवरी में कुछ घंटे का समय लगता है जबकि सिजेरियन से मात्र 30 से 45 मिनट में शिशु बाहर आ जाता है । इससे डॉक्टरों का समय बचता है, प्रसूता को प्रसव पीड़ा से नहीं गुजरना पड़ता । अस्पताल को सिजेरियन से अच्छी कमाई भी होती है क्योंकि कि प्रसूता को 7- 8 दिन अस्पताल में रहना पड़ता है । सिजेरियन के लिए सीजीएचएस योजना से सरकारी कर्मचारियों का या कारपोरेट कर्मचारियों का कम्पनी द्वारा बिल भुगतान हो जाता है ।

      बताया जाता है कि देश की राजधानी में 70 % डिलीवरी सिजेरियन से प्राइवेट अस्पतालों में होती है । अधिकांश महानगरों में 70 से 95 % तक प्रसव सिजेरियन से करवाये जाते हैं । नार्मल डिलीवरी एक स्वस्थ परम्परा है जिसे अस्पताल में ही कराया जाना चाहिए । चिकित्सकों के अनुसार सिजेरियन प्रसव से जन्मे बच्चे संघर्ष में अक्षम और निरीह होते हैं वहीं महिलाओं को सिजेरियन के बाद रक्ताल्पता (अनेमिया), मोटापा या उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेसर) जैसे परेशानी हो सकती है ।

      एक समाचार के मुताबिक उन डॉक्टरों पर अब नजर रखी जा रही है जिन्होंने अधिक सिजेरियन किये हैं । मां बनने वाली युवती को उसके परिजनों द्वारा नार्मल प्रसव के लिए प्रोत्साहित किया जाना आज के माहौल में एक सर्वोत्तम बात होगी । आरम्भ में ही सिजेरियन की बात करना गलत है । सिजेरियन तो एक आपातकाल परिस्थिति है जब महिला बीमार हो या कोई चिकित्सकीय सलाह दी गई हो । नारी को इतना नाजुक या हिम्मतहार भी नहीं होना चाहिए कि वह प्रसव के नाम से डरने लगे । ग्रामीण भारत में सामान्य प्रसव का ही अधिक प्रचलन है जबकि शहरों में सिजेरियन एक आम बात हो गई है ।

पूरन चन्द्र काण्डपाल
19.09.2020

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