Thursday 24 September 2020

meri yaadein : मेरी यादें

संस्मरण - 1 : मेरी यादें

     वर्ष 1964 में 10वीं पास करते ही मैं काम की खोज में निकल गया था । नौकरी करते हुए स्नातकोत्तर शिक्षा (राजनीति शास्त्र में) तथा  तकनीकी स्वास्थ्य शिक्षा में अध्ययन किया । 40 वर्ष की नौकरी में मैंने कई उतार - चढ़ाव देखे । भारतीय सेना में रह कर 1971 के 14 दिन के भारत - पाक युद्ध में देश की सीमा पर भी सेवा दी । जीवन में  बड़े खट्टे - मीठे - कड़ुवे अनुभव भी हुए । अपने अनुभवों को याद करता हूं तो गुजरा जमाना याद आ जाता है । कभी कभी सोचते सोचते अपने आप मुस्कराने लगता हूं । पत्नी देवी कहती है अपने आप पागलों की तरह क्यों हंस रहे हो ? यादें मनुष्य की बहुत बड़ी निधि हैं जिनके सहारे वह दुख - सुख में जी लेता है, समस्याओं से जूझ सकता है । मैं सोसल मीडिया में विगत 7- 8 वर्ष से कुछ शीर्षकों ( बिरखांत, खरी खरी, मीठी मीठी, स्मृति, दिल्ली बै चिठ्ठी ऐ रै ( कुर्मांचल अखबार अल्मोड़ा) और ट्वीट ) के अन्तर्गत कुमाउनी और हिंदी में कलमघसीटी कर रहा हूं जिनकी कुल संख्या 2724 ( 'दिल्ली चिठ्ठी ' इसमें नहीं है जिनकी संख्या 300 से अधिक है ) हो गई है जिन्हें मेरे मित्र, आलोचक, पाठक आदि सभी पढ़ते हैं और अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं तथा मेरा मार्ग दर्शन भी करते हैं । मैं इन सबका आभारी हूं ।

      मैं बदलाव का पक्षधर हूं । कट्टरवाद को अनुचित समझता हूं । रूढ़िवाद और अंधश्रद्धा से भरी परंपराओं में शिक्षा के सूर्योदय के साथ बदलाव होना चाहिए । शिक्षा के प्रकाश से ही अंधेरा मिटेगा । अंधेरा मिटाने के लिए दीप प्रज्ज्वलित करना ही होगा । इसी सोच से पढ़ना - लिखना मेरा शौक बन गया । मैं आजीवन छात्र बन कर ही रहना चाहता हूं । विगत 40 वर्षों में 30 किताबों ( 17 हिंदी और 13 कुमाउनी )  की रचना भी कब हो गई पता नहीं चला । अब एक नए शीर्षक ' संस्मरण ' के अन्तर्गत कुछ संजोई हुई यादों को अपने पाठकों से साझा करने का मन है । कितना सफल होता हूं यह तो समय बताएगा । शीघ्र ही नया शीर्षक ' संस्मरण ' आरम्भ होगा तथा साथ ही पुराने शीर्षक भी गतिमान रहेंगे । मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपका स्नेह बरसते रहेगा जिससे मेरी कलम घसीटी चलते रहेगी ।

पूरन चन्द्र कांडपाल
24.09.2020

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