खरी खरी - 694 : गुटखा-धूम्रपान
गुटखा तम्बाकू धूम्रपान
लहू तेरा पी रहे सुनसान ।
खैनी गुटखा पान मसाला
चूना कत्था जर्दा वाला,
पुड़िया तम्बाकू मुंह उड़ेले
कब जागेगा तू इंसान ।
खुद को तो तू मार रहा
धुआं दूजे पर डाल रहा,
तेरे मुंह के धुमछल्लों से
सारा जग होता परेशान ।
अस्पताल बैंक रेल स्टेसन
घर दफ्तर आंगन बस स्टेसन,
गली मुहल्ला झड़क शौचालय
लाल किया तूने नादान ।
नुक्कड़ कोना खिड़की सीढ़ी
फैंके टुकड़े सिगरट बिड़ी,
कार्यालय का वाटर कूलर
बना दिया तूने थूकदान ।
नशा नहीं है ये तो जहर है
तुझ पै ढा रहा कैसा कहर है,
अभी वक्त है छोड़ नशे को
बन समाज का व्यक्ति सुजान ।
पूरन चन्द्र कांडपाल
11.09.2020
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