Saturday 7 December 2019

Jugadbaji ka rog : जुगाड़बाजी का रोग

खरी खरी - 529 : जुगाड़बाजी का रोग

     कुछ महीने पहले हमने एक रामलीला में लक्ष्मण - परशुराम संवाद देखा । दोनों  ही स्थानीय कलाकार थे । परशुराम का पात्र लक्ष्मण के पात्र से उम्र में कुछ बड़ा था और लक्ष्मण से अच्छा कलाकार भी था । रामलीला में संवाद के बाद मंच से इनाम की घोषणा हुई तो लक्ष्मण को एक हजार रुपए और परशुराम को दो सौ रुपए का इनाम बताया गया । परशुराम के पात्र का अभिनय लक्ष्मण से अच्छा था फिर लक्ष्मण को इनाम अधिक क्यों मिला होगा ? खोजबीन करने पर पता चला कि इनाम देने वाले आठ लोग लक्ष्मण के रिश्तेदार थे जो एक एक सौ रुपया लक्ष्मण को दे गए जबकि दो अनजान लोगों ने एक एक सौ रुपए लक्ष्मण और परशुराम दोनों को इनाम दिए । स्पष्ट है इनाम कला को नहीं बल्कि रिश्तेदार को दिया गया ।

       इस इनाम को देखकर मुझे कई वर्ष पहले देखी गांव की रामलीला याद आ गई । यहां भी लक्ष्मण का पात्र इनाम के जुगाड़ में ही रहता था । उसने अपने गांव के एक सहपाठी को कहा, "सुन, मैं तुझे चांदी का एक पदक देता हूं । तू आज रामलीला में लक्ष्मण - परशुराम संवाद के बाद यह पदक मुझे इनाम में दे देना । मंच से घोषणा होने पर तेरा भी नाम हो जाएगा और मैं उत्तम पात्र घोषित हो जाऊंगा ।" लक्ष्मण का वह सहपाठी बोला, " देख यार हम गरीब लोग हैं । बड़ी मुश्किल से घर में चूल्हा जलता है । जब मेरे नाम से चांदी का पदक लक्ष्मण को इनाम दिए जाने की घोषणा होगी तो लोग सोचेंगे कि इस फटेहाल गरीबी में ये लड़का पदक कहां से लाया होगा ? मुझ से यह काम नहीं होगा । तू मुझे दो रुपए दे, एक तुझे और एक परशुराम को इनाम में दे दूंगा । एक के बजाय दोनों को इनाम देना अच्छा रहेगा । भौनिका (परशुराम ) भी बहुत अच्छे पात्र हैं । मैंने उनको तालिम में देखा है । गजब का पाट खेलते हैं वे । लक्ष्मण ने दो रुपए देने से मना कर दिया ।

       लक्ष्मण की महत्वाकांक्षा कम नहीं हुई । उसने पदक इनाम देने के लिए दूसरे गांव के एक अन्य व्यक्ति को पटा लिया । इसका पता तब चला जब रात को रामलीला में लक्ष्मण - परशुराम संवाद के बाद मंच से लक्ष्मण के पात्र को चांदी का एक पदक इनाम स्वरूप घोषित हुआ । लोग कह रहे थे, "यार ऐकटींग तो परशुराम की लक्ष्मण से अच्छी थी । पदक देने वाले ने भाईबंदी करी है । परशुराम को भी पदक देता तो ठीक होता । यह लक्ष्मण का जुगाड़ हो सकता है वरना चांदी का मैडल उसके बजाय परशुराम को मिलना चाहिए था ।"

        आज भी हमारे सामने इस तरह के कई जुगाड़ू लक्ष्मण हैं जो जहां - तहां जुगाड़बाजी से इनाम या पुरस्कार झटक लेते हैं और पुरस्कार के वास्तविक हकदार देखते रह जाते हैं । लोग इन चाटुकार - जुगाड़बाज लक्षमणों को अब बखूबी पहचानने भी लगे हैं क्योंकि लोगों को बगुलों और हंसों की पहचान एक न एक दिन देर - सवेर हो ही जाती है । बगुला हंस बनकर कितने दिन तक घूम सकता है ?   इस तरह के जुगाड़ बाज लक्ष्मण अपने घर के शीशे के सामने भी खड़े नहीं हो सकते क्योंकि शीशा बोलता है, "मेरे सामने खड़े होने की तेरी हिम्मत कैसे हुई ? तू मुर्दा जमीर वाला जिंदा जुगाड़ू है ।" जुगाड़बाजी का रोगी कभी किसी से नजर नहीं मिला सकता । इन रोगियों को अपना भेद खुलने का डर सताते रहता है ।  झूठ के पैर नहीं होते । सच्चाई और ईमानदारी के सामने झूठ और फरेब कभी टिक नहीं सका है । जुगाड़बाजी के चेहरे देर - सवेर एक दिन बेनकाब हो ही जाते हैं ।

पूरन चन्द्र कांडपाल

08.12.2019

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