Thursday 17 October 2019

Karwachauth : करवाचौथ

खरी खरी -507 : करवाचौथ 

करवाचौथ व्रत!
सुहाग के लिए
पति के लिए,
निर्जल निश्छल
आस्था अविरल ।

व्रत श्रद्धा के दीये
सब स्त्री के लिए,
किसी पति ने कभी
शायद व्रत नहीं रखा
पत्नी के लिए ।

तुमने सभी धर्मग्रन्थ
वेद पुराण अनंत
श्रुति शास्त्र स्मृति,
लिख डाले मेरे लिए
स्वयं को मुक्त किये ।

रीति रिवाज मान मर्यादा
कायदे क़ानून संस्कृति सभ्यता,
शर्म हया नियम परम्परा
सब का सिंकजा मेरे लिए धरा,
स्त्री होने की यह निर्दयता ।

चाह नहीं मेरी
तुम मेरे लिए व्रत करो,
पर है एक छोटी सी चाह
तुम जीवन संगीनी का
कभी न अपमान करो ।

स्मरण है मुझे
मेरा पत्नी धर्म निश्छल,
यही आशा-अपेक्षा
तुम्हें भी याद रहे
पति धर्म हर पल ।

मैं अपूर्ण तुम बिन
तुम्हारी अपूर्णता भी
बनी रहे मुझ बिन,
मेरे स्वाभिमान पर
न आये आंच पल छिन ।

है जो तुमने मुझे
अपनाया तन मन से,
समझा अर्धांगिनी ह्रदय से
तो चीज वस्तु कठपुतली
शब्द न फूटें मुख से ।

नहीं है प्रश्न मेरी
पूजा सम्मान सत्कार का,
न किसी भवन दरबार का
बस सहचरी समझो मुझे
चाह नहीं धन अम्बार का ।

(सभी पतियों -पत्नियों को करवाचौथ के शुभअवसर पर बहुत- बहुत शुभकामना । प्रथम मिलन के क्षण का स्मरण आज जरूर करें, एक छिपी हुई मिठास महसूस होगी आपको । पति के लिए व्रत पत्नी ही क्यों रखे ? पति को भी पत्नी के लिए व्रत रखना चाहिए । कुछ लोग रखते भी हैं ।)

पूरन चन्द्र काण्डपाल 
17.10.2019
(कविता संग्रह ' यादों की कालिका' से उद्धृत )

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