मीठी मीठी - 358 : जीवन पथ पर...
कुछ दिन पहले सुश्री विजय लक्ष्मी शर्मा ' विजया ' जी ने स्वरचित काव्य - संग्रह " जीवन पथ पर..." मुझे भेंट किया । जब भी किसी रचनाकार ने मुझे अपनी पुस्तक भेंट की है, मैं कुछ शब्द उस पुस्तक के बारे में देर - सबेर अवश्य लिखता हूं । इन शब्दों को समीक्षा तो न समझा जाय परन्तु पुस्तक की एक झलक कहा जा सकता है ।
सत्साहित्य प्रकाशन दिल्ली द्वारा प्रकाशित ' जीवन पथ पर...' काव्यसंग्रह में 120 पृष्ठों में समाई हुई 60 कविताएं हैं । लेखिका की यह प्रथम पुस्तक है जो अपने माता - पिता को समर्पित है जिसमें उनके प्रति सम्मान प्रकट किया गया है " नमामि मातृ और पितृ शक्ति, जिनसे विजया को इतना सम्मान मिला ।" अपने माता - पिता के प्रति लेखिका की यह अपार कृतज्ञता है ।
पुस्तक में "मां " शब्द के साथ जुड़ाव रखती चार कविताएं हैं - ' आओ मां ', ' मेरी मां ' , ' मां अब बूढ़ी होने लगी है ' और ' ममता ' । ' मेरी मां ' कविता में कवयित्री मां के ऋण को याद करती हैं -
" मेरे हर कदम पर गुरु,
सखी और उपदेशक सी,
ऋणी है मेरी हर सांस,
तेरी जागती लंबी रातों की ।"
कविता "आज फिर " में लेखिका समाज में फैली अराजकता, अ सामाजिकता, नारी निरादर, बढ़ते अपराध और वैमनस्यता को देखकर व्यथित हैं । वे कहती हैं -
" द्रौपदी चीर हरण आज फिर,
जहर का प्याला आज फिर,
सीता -हरण आज फिर,
प्रतीक्षारत अहिल्या आज फिर,
कैकेयी - मंथरा आज फिर,
अबला ही है आज फिर ।"
एक कविता जो अपनी ओर ध्यान आकृष्ट करती है वह है " मिला नहीं "। जब मनुष्य की उम्मीद पूरी नहीं होती है तो कवयित्री कह उठती हैं -
"कभी छिड़कते थे जान मुझ पर,
आज उन्हीं की आंख की किरकिरी हूं,
बेवफा होकर कहां छु गए हो तुम
हमको भी कहीं करार मिला नहीं ।"
इस कविता संग्रह की सभी कविताएं पठनीय हैं, संदेशात्मक हैं और संवेदना प्रेषक हैं । एक कविता "अंध भक्ति " भी इस कविता संग्रह में है जो अंध भक्ति पर व्यंगात्मक प्रहार करती है । झूठ - पाखंड और धर्म के ठेकेदारों को बेनकाब करती इस कविता की कुछ पंक्तियां इस तरह हैं -
"जय हो ऐसे भक्तों की है ईश्वर !
जो झूठ को सच समझते हैं,
अंध भक्ति में ये हैवान को
भगवान समझते हैं ।"
एक रोचक एवम् संग्रहणीय कविता संग्रह की रचना हेतु लेखिका को बहुत -बहुत बधाई और शुभकामनाएं । उम्मीद है पाठक इस काव्य साहित्य का अवश्य आनंद लेंगे। पुस्तक का मूल्य ₹ 250/-, संपर्क - 8587909899, 8700404381.
पूरन चन्द्र कांडपाल
04.10.3019
No comments:
Post a Comment