Sunday 22 September 2019

pitra paksha par Kabir Ramana d : जी पितृ पक्षा पता कबीर रामानंद

खरी खरी - 496  : पितृ पक्ष पर कबीर और रामानंद

        एक बार गुरु रामानंद ने कबीर से कहा, " हे कबीर ! आज श्राद्ध का दिन है और पितरों के लिए खीर बनानी है। आप जाइए, पितरों की खीर के लिए दूध ले आइए...।

    कबीर उस समय नौ वर्ष के ही थे। वे दूध का बरतन लेकर चल पड़े । चलते-चलते रास्ते में उन्हें एक गाय मरी हुई मिली । कबीर ने आस-पास से घास उखाड़कर गाय के पास डाल दी और वहीं पर बैठ गए । दूध का बरतन भी पास ही रख लिया ।

    बहुत देर हो गई । जब कबीर नहीं लौटे, तो गुरु रामानंद ने सोचा कि पितरों को भोजन कराने का समय हो गया है लेकिन कबीर अभी तक नहीं आया । ऐसा सोचकर रामानंद जी खुद चल दूध लेने पड़े । जब वे चलते-चलते आगे पहुंचे तो देखा कि कबीर एक मरी हुई गाय के पास बरतन रखे बैठे हैं । यह देखकर गुरु रामानंद बोले - "अरे कबीर तू दूध लेने नहीं गया.?"

कबीर बोले -  स्वामीजी, ये गाय पहले घास खाएगी तभी तो दूध देगी।

रामानंद बोले -  अरे ये गाय तो मरी हुई है, ये घास कैसे खाएगी?

कबीर बोले - स्वामी जी, ये गाय तो आज मरी है । जब आज मरी गाय घास नहीं खा सकती, तो आपके वर्षों पहले मरे हुए पितर खीर कैसे खाएंगे...? यह सुनते ही रामानंद जी मौन हो गए और उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ ।

माटी का एक नाग बना के,
पुजे लोग लुगाया ।
जिंदा नाग जब घर में निकले,
ले लाठी धमकाया ।।
 
जिंदा बाप कोई न पूजे,
मरे बाद पुजवाया ।
मुठ्ठीभर चावल ले के,
कौवे को बाप बनाया।।

यह दुनिया कितनी बावरी है,
जो पत्थर पूजे जाए ।
घर की चकिया कोई न पूजे,
जिसका पीसा खाए।।

भावार्थ  यह है कि जीवित  माता - पिता की सेवा करनी चाहिए । बस यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धा है - संत कबीर । ( हम अपने पितरों की पुण्यतिथि या जन्मतिथि पर अपनी सामर्थ के अनुसार किसी भी सुपात्र को दान कर सकते हैं, किसी विद्यार्थी की मदद कर सकते हैं या किसी विद्यालय को वार्षिक छात्रवृत्ति दे सकते हैं । )

( यह संपादित प्रेरक प्रसंग सोसल मीडिया मित्र श्री विक्रम सिंह नेगी जी की पोस्ट से साभार उद्धृत है ।)

पूरन चन्द्र कांडपाल
23.09.2019

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